Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ... 395
तत्पश्चात् उपधानवाही इच्छानुसार प्रत्याख्यान ग्रहण करें। उसके बाद सभी उपधानवाही गुरू के समक्ष यह कहते हैं- 'उपधानमांहि अविधि आशातना कीधी होय ते मिच्छामि दुक्कडं । '
मालारोपण विधि
महानिशीथसूत्र के अनुसार जिस दिन चन्द्र, नक्षत्र, करण, मुहूर्त आदि शुभ हो, उस दिन मालारोपण विधि करना चाहिए। प्राचीनकाल में यह परम्परा यथावत् मौजूद थी। वर्तमान में लगभग उपधानतप पूर्ण होने के दूसरे दिन ही मालारोपणविधि का उत्सव कर लेते हैं। यद्यपि इस समय मुहूर्त्त शुद्धि आदि का ध्यान निश्चित रूप से रखा जाता है। फिर भी तप - पूर्णाहुति के दूसरे दिन की जाने वाली यह माल महोत्सव विधि कितनी सही और सार्थक है ? अवश्य मननीय है।
महानिशीथसूत्र का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि जब श्रेष्ठ दिन हो, उसी दिन माला महोत्सव करना चाहिए, भले ही वह श्रेष्ठ दिन उपधान पूर्णाहुति के दस दिन बाद आता हो ।
जैन ग्रन्थों में ऐसा उल्लेख आता है कि शुभमुहूर्त में हीरे की या एक सौ आठ फूलवाली एक माला बनवाना चाहिए। वह माला महोत्सव के पूर्व दिन उत्सवपूर्वक अपने घर से गुरू के समीप लाई जानी चाहिए। गुरू द्वारा माला को वासचूर्ण से अधिवासित करवाना चाहिए । फिर महोत्सवपूर्वक घर ले जाकर पट्ट आदि उच्च आसन पर उसे रख देना चाहिए तथा उसके समक्ष रात्रि जागरण करना चाहिए।
वर्तमान में यह प्रणाली कम प्रचलित है। दूसरे, जो आराधक अन्य नगरों से आते हैं, उनके लिए गृहमहोत्सव एवं रात्रिजागरण करना करवाना कदाच् असम्भव हो, किन्तु जो नगरस्थ उपधानवाही हैं, उन्हें मालमहोत्सव के पूर्व दिन का यह कृत्य अवश्य सम्पन्न करना चाहिए। यह उसके स्वयं के अनन्य हित के लिए है।
यह उल्लेखनीय है कि प्राचीन परम्परा में प्रत्येक सूत्र का उद्देश, समुदेश एवं अनुज्ञा उस सूत्र की पूर्णाहूति के साथ ही हो जाया करती थी, किन्तु कुछ वर्षों पूर्व से यह परिपाटी देखी जाती है कि प्रत्येक सूत्र की समुद्देश और अनुज्ञा विधि मालमहोत्सव के दिन मालारोपण के पूर्व की जाती है। इसी कारण से