Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 467
________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन... 401 आयंबिल के प्रत्याख्यान करवाएं। फिर मालाग्राही एक खमासमणपूर्वक भूमितल पर मस्तक रखकर अविधि - आशातना के लिए मिथ्यादुष्कृत दें। • पुनः मालाग्राही एक खमासमण देकर अनुमति ग्रहणार्थ यह बोलें"इच्छा. संदि. ! माला पहिरेमि ?" गुरू कहे- 'पहिरेह ।' तब शिष्य 'इच्छं' कहे। गुरूलाल सूत के धागों से बनी हुई माला को प्रतिष्ठामन्त्र से अथवा सात बार नमस्कारमन्त्र के स्मरण से अभिमन्त्रित करें। • फिर मालाग्राही के स्वजनसम्बधियों को यथाशक्ति ब्रह्मचर्यव्रत का नियम दिलाकर माला उनके हाथ में प्रदान करें। जिसने व्रत-प्रत्याख्यानपूर्वक माला पहनाने का संकल्प किया है, वह माला को मस्तक झुकाते हुए वन्दन कर तथा मालाग्राही के मस्तक पर तिलक कर सात बार नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए मालाग्राही के कण्ठ में उसे स्थापित करें। • तदनन्तर गुरू मालाग्राही के मस्तक पर वासचूर्ण का क्षेपण करें। • उसके बाद मालाग्राही समवसरण के चारों ओर तीन प्रदक्षिणा लगाएँ । उस प्रदक्षिणा के समय तीन बार 'नित्थारपारगा होह' - ऐसा कहते हुए गुरू वासचूर्ण और श्रीसंघ अक्षत का क्षेपण करें। • उसके बाद मालाग्राही एक खमासमण देकर निवेदन करें- 'इच्छा. तुम्हे अम्हं उवहाणमहप्पं सुणावेह | ' गुरू कहे- 'सुणावेमो ।' ऐसा कहकर गुरू धर्मोपदेश सुनाएं। • तत्पश्चात् मालाग्राही चतुर्विध संघ के साथ होकर मंगल - वाद्यादिपूर्वक जिन चैत्यालय में जाएं। उसके बाद उस माला को गृहप्रतिमा के सम्मुख स्थापित कर छः माह तक धूपोत्क्षेपपूर्वक नित्य पूजा करें। यह मालारोपण की प्राचीन एवं प्रचलित विधि है। तपागच्छ परम्परा में समुद्देश विधि, अनुज्ञा विधि एवं मालारोपण विधि पूर्ववत् ही सम्पन्न करते हैं। इसमें मुख्य अन्तर आलापक पाठ संबंधी ही ज्ञात होता है। 167 पायच्छंदगच्छीय पूज्या प्रवर्तिनी ऊंकारश्रीजी म.सा. एवं त्रिस्तुतिकगच्छीय आचार्य श्री जयन्तसेनसूरीजी म.सा. के साथ हुई प्रत्यक्ष एवं पत्र चर्चा के आधार पर इन दोनों परम्पराओं में मालारोपण - विधि का स्वरूप प्रायः पूर्ववत् ही है। जैन धर्म की प्रचलित परम्पराओं में उपधानविधि उपधान एक शास्त्रीय-अनुष्ठान है। वर्तमान दृष्टि से इसका मूल्यांकन करने पर ज्ञात होता है कि खरतरगच्छ एवं तपागच्छ इन दोनों शाखाओं में इसका

Loading...

Page Navigation
1 ... 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540