Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...399 गुरू कहे-'करावेमो।' उसके बाद गुरू और शिष्य-दोनों ही सत्ताईस श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर लोगस्ससूत्र बोलें।
• तत्पश्चात् मालाग्राही एक खमासमण देकर कहें- "इच्छा. तुम्हे अम्हं नंदिसुत्तं सुणावेह।" तब गुरू कहे-'सुणावेमो।' ऐसा कहकर गुरू तीन बार नमस्कारमन्त्र बोलकर तीन बार नन्दीसूत्र सुनाएं तथा तीन बार उपधानवाही के मस्तक पर वासचूर्ण डालें। नन्दीसूत्र का संक्षिप्त पाठ यह है
'नाणं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा-आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं, ओहिनाणं,मणपज्जवनाणं,केवलनाणं जाव सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अणुओगो पवत्तइ" इत्यादि। यहाँ नन्दीसूत्र का पाठ मंगलार्थ एवं कल्याणार्थ सुनाया जाता है। . उसके बाद गुरू वर्धमानविद्या द्वारा अक्षत अभिमन्त्रित करके श्रमण-श्रमणियों को वासचूर्ण एवं श्रावक-श्राविकाओं को अक्षतदान करें। फिर गुरू अपने आसन से उठकर जिनप्रतिमा के चरणों पर वासक्षेप डालें।
1. तदनन्तर मालाग्राही एक खमासमण देकर अनुज्ञा के बारे में गुरू से निवेदन करें- “इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं पढमंउवहाणं-पंचमंगल महासुयक्खंधं, बियंउवहाणं-पडिक्कमणसुयक्खंधं, तइयंउवहाणंभावारिहंतत्थय, चउत्थंउवहाणं- ठवणारिहंतत्थय, पंचमंउवहाणं- चउवीस-स्थय, छटुंउवहाणं-नाणत्थय, सत्तमंउवहाणं-सिद्धत्थय अणुजाणह।" गुरू कहे'अणुजाणामो।'
2. तब मालाग्राही 'इच्छं' कहकर एक खमासमण देकर कहें- 'संदिसह किं भणामो ?' गुरू कहे - 'वंदित्ता पवेयह।'
3. पुनः, एक खमासमण देकर मालाग्राही बोलें- "इच्छा. तुम्हे अम्हं पढमंउवहाणं-पंचमंगलमहासुयक्खंधं, बियंउवहाणं-पडिक्कमणसुयक्खंधं, तइयंउवहाणं-भावरिहंतत्थय, चउत्थंउवहाणं-ठवणारिहंतत्थय, पंचमंउवहाणं- चउवीसत्थय, छटुंउवहाणं-नाणस्थय, सत्तमंउवहाणंसिद्धत्थय अणुन्नाओ?" तब गुरू वासचूर्ण डालते हुए “अनुज्ञात किया है" यानी इन सूत्रों को पढ़ने-पढ़ाने की अनुमति दी गई है- ऐसा तीन बार बोलें और "इन सूत्र पाठों को सदैव सम्यक् प्रकार से धारण करना तथा चिरकाल तक याद रखना''-ऐसा शिक्षावचन कहें। साधुओं के प्रति 'अन्नेसिपि पवेयणिज्जो'