Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 464
________________ 398... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... अनुज्ञा (सूत्रों के पठन-पाठन की अनुज्ञा) विधि- समुद्देशविधि पूर्ण होने पर मालाग्राही एक खमासमण देकर बोलें- "इच्छाकारेण संदि. भगवन् ! मुहपत्तिं पडिलेहेमि ?'' गुरू कहे- 'पडिलेहेह।' उसके बाद वह मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करके, दो बार द्वादशावर्त्तवन्दन करें। • फिर एक खमासमण देकर कहें- "इच्छाकारेण भगवन्! तुम्हे अम्हं पढमंउवहाणपंचमंगलमहासुयक्खंधं, बियंउवहाणं- पडिक्कमणसुयक्खंधं, तइयंउवहाणं-भवारिहंतत्थय, चउत्थंउवहाण-ठवणारिहंतत्थय, पंचमउवहाण, चउव्वीसत्थय, छटुंउवहाणं-नाणत्थय, सत्तमंउवहाणं- सिद्धत्थयअणुजाणावणियं नदिकड्ढावणियं वासनिक्खेवं करेह''- हे भगवन्! उपधान-योग्य इन सात सूत्रों की अनुज्ञा ग्रहण करने के लिए एवं नंदी का अनुसरण करने के लिए मुझ पर वासचूर्ण का निक्षेप करिए। तब गुरू कहे-'करेमो।' उसके बाद गुरू वर्द्धमानविद्या से अभिमन्त्रित वासचूर्ण मालाग्राही के मस्तक पर तीन बार डालें। • तदनन्तर मालाग्राही एक खमासमण देकर निवेदन करेंपढमंउवहाणं-पंचमंगलमहासुयक्खंधं, बियंउवहाणं- पडिक्कमणसुयक्खंधं, तइयंउवहाणं-भावारिहंतत्थय, चउत्थंउवहाणं-ठवणारिहंतत्थय, पंचम- उवहाण- चउव्वीसत्थय, छटुंउवहाण-नाणत्थय, सत्तमंउवहाणंसिद्धत्थय अणुजाणावणियं नंदिकड्ढावणियं चेइयाइं वंदावेह ". हे भगवन्! उपधान-योग्य सात सूत्रों की अनुज्ञा ग्रहण करने के लिए एवं नंदी का अनुसरण करने के लिए चैत्यवन्दन करवाएं। तब गुरू बोले- 'वंदावेमो।' उसके बाद गुरू और मालाग्राही चैत्यवंदन मुद्रा में बैठकर वर्द्धमान स्वामी आदि की 18 स्तुतियों द्वारा पूर्ववत् चैत्यवंदन (देववंदन) करें। • तदनन्तर पुन: मालाग्राही एक खमासमण देकर- 'इच्छा. संदि.! मुहपत्तिंपडिलेहुं ?' 'इच्छं' कहकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन और दो बार द्वादशावर्त्तवन्दन करें। पुन: एक खमासमणपूर्वक कहे- "इच्छा. तुम्हे अम्हं पढमंउवहाणं-पंचमंगलमहासुयक्खंध, बियंउवहाणं-पडिक्कमणसुयक्खधं, तइयउवहाणं-भावारिहंतत्थयं, चउत्थंउवहाणं- ठवणारिहंतत्थयं, पंचमउवहाणं-चउव्वीसत्थय, छट्ठउवहाणं- नाणस्थय सत्तमंउवहाणंसिद्धत्थय अणुजाणावणियं नंदिकड्ढावणियं काउस्सग्गं करावेह।" तब

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