Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 456
________________ 390... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक तदनन्तर उपधानवाही 'इच्छं' कहकर एक खमासमण पूर्वक मुखवस्त्रिका को मुख पर स्थापित करते हुए अर्धावनत मुद्रा में खड़े रहें । उस समय गुरू तीन बार नमस्कारमन्त्र का स्मरण कर ‘णमो अरिहंताणं' से लेकर ‘णमो लोए सव्वसाहूणं' तक पाँच अध्ययन की तीन बार वाचना दें। उसके बाद गुरू उपधानवाहियों मस्तक पर वासचूर्ण प्रक्षेपित करें। फिर शिष्य वाचना ग्रहण करते समय हुई अविधि - आशातनाओं के लिए मन-वचन-कायापूर्वक मिच्छामिदुक्कडं दें। उसके बाद उपधानवाही वन्दन कर स्वाध्याय आदि करें। 151 तपागच्छ परम्परा में वाचनाविधि का यह स्वरूप है - 1. सर्वप्रथम ‘वसतिशुद्धि' की क्रिया करते हैं 2. उसके बाद वाचना के निमित्त मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन का आदेश लेकर, मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करते हैं, फिर 'वायणासंदिसाहूं, 'वायणालेशू'- ये दो आदेश लेकर गुरू मुख से तीन बार सूत्र - पाठ ग्रहण करते हैं 3. उसके बाद गुरू उनके मस्तक पर वासचूर्ण डालते हैं। 152 खरतर एवं तपागच्छ इन दोनों आम्नायों में सामाचारी अन्तर यह है कि खरतरगच्छ-परम्परा में उपवास के दिन वाचना दी जाती है, जबकि तपागच्छपरम्परा में उपवास या आयंबिल किसी भी दिन वाचना देने की परिपाटी है। इस परम्परा में कारणविशेष से नीवि ( एकासन) के दिन भी वाचना देने का विधान है। 1 153 खरतरगच्छ की प्राचीन एवं वर्तमान सामाचारी में पुरूष एवं स्त्रियां- दोनों के लिए अर्धावनत होकर वाचना ग्रहण करने का उल्लेख है, जबकि तपागच्छपरम्परा में दोनों के लिए उत्कटासन मुद्रा में वाचना ग्रहण करने का निर्देश है।154 कायोत्सर्ग करने की विधि उपधानवाही को प्रतिदिन 100 लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिएऐसा जीत आचार है। कायोत्सर्ग करने की विधि निम्न है - सर्वप्रथम एक खमासमण देकर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। उसके बाद 'इच्छा. संदि. भगवन् ! प्रथम 155 उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कन्ध आराधनार्थं काउस्सग्गं करूँ ? ‘इच्छं' कहकर वंदणवत्तियाए एवं अन्नत्थसूत्र बोलकर 'चंदेसुनिम्मलयरा' तक 100 लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर ‘नमोअरिहंताणं’ बोलकर प्रकट में लोगस्ससूत्र कहे।

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