Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 448
________________ 382... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक लोगस्ससूत्र का ही चिन्तन करते हैं ।) इसके बाद ' णमो अरिहंताणं' पूर्वक कायोत्सर्ग पूर्णकर लोगस्ससूत्र या नमस्कारमन्त्र बोलें। देववंदन - विधि • तदनन्तर पुनः एक खमासमणसूत्रपूर्वक वन्दन कर उपधानवाही कहें-‘“इच्छा. तुब्भे अम्हं पढमउवहाणपंचमंगलमहासुयक्खंधतव उक्खेवावणियं नंदिपवेसावणियं चेइयाइं वंदावेह" - हे भगवन् ! आप इच्छापूर्वक मुझे प्रथम नमस्कारमंत्र सूत्र की आराधना करने के निमित्त एवं नन्दि में प्रवेश करने निमित्त देववंदन करवाई । तब गुरू ' वंदावेमो' - देववन्दन करवाता हूँ, ऐसा कहे। उसके बाद उपधानवाही 'इच्छं' कहकर अर्द्धावनत होकर बैठ जाएं। गुरू वर्धमानविद्या से वासचूर्ण को अभिमन्त्रित कर तीन बार उसके मस्तक पर डालें। .... * यहाँ विधिमार्गप्रपा में तीन अथवा सात बार 135 वासचूर्ण डालने का उल्लेख है, परन्तु वर्तमान परम्परा में तीन बार ही डालते हैं। उसके बाद सभी उपधानवाही गुरू के साथ 18 स्तुतियों द्वारा पूर्ववत् देववन्दन करें। 136 यहाँ तपागच्छ आदि परम्पराओं में आठ स्तुतियों से देववन्दन करते हैं।137 नंदीश्रवण-विधि • उसके बाद उपधानवाही एक खमासमणसूत्र पूर्वक आदेश लेकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। फिर दो बार द्वादशावर्त्तवन्दन देकर, · पुन: एक खमासमणपूर्वक कहे- "इच्छा० तुब्भे अम्हं पढमउवहाण पंचमंगलमहासुयक्खंधतव उद्देशनंदिकड्ढावणियं काउस्सग्गं करावेह"- हे भगवन् ! आप इच्छापूर्वक मुझे प्रथम उपधान में प्रवेश करने के निमित्त नंदीपाठ का अनुसरण करने के लिए कायोत्सर्ग करवाईए। तब गुरू और उपधानवाहीदोनों ही सत्ताईस श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग करते हैं और प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलते हैं। उसके बाद उपधानवाही एक खमासमणसूत्र द्वारा वन्दन करके बोलें" इच्छा० तुब्भे अम्हं पढम पंचमंगलमहासुयक्खंध तव उद्देसावणियं नंदिसुत्तं सुणावेह" - हे भगवन्! आप इच्छापूर्वक मुझे प्रथम उपधानतप का उद्देश करने के निमित्त नंदीसूत्र सुनाईए । तब गुरू नन्दीरचना में विराजित चौमुखी प्रतिमा पर वासचूर्ण का क्षेपण करें। फिर नमस्कारमन्त्र का मूलपाठ ग्रहण करवाने के निमित्त नन्दिसूत्र के स्थान पर उपधानवाही को तीन बार

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