Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 452
________________ 386... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... उपधान पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध उद्देसावणी, नंदीकरावणी, वासनिक्षेप करावणी, देववंदावणी, नंदीसूत्रसंभलावणी पूर्वचरणपद पईसरावणी पाली तप करशं'-ऐसा बोलकर उपवास आदि तप के प्रत्याख्यान करते हैं। शेष विधि दोनों में समान है।144 ___ नंदीविसर्जन-विधि • यदि प्रथम या दूसरे उपधान में प्रवेश करने के निमित्त नंदीरचना की गई हो, तो नंदीपवेयणाविधि के अनन्तर नंदीरचना का विधिवत् विसर्जन किया जाता है। नन्दीरचना विधि, नन्दीविसर्जन विधि एवं नन्दीप्रवेश दिन में की जाने वाली देववन्दनविधि परिशिष्ट भाग में उल्लिखित करेंगे। पौषधग्रहण-विधि . उपधान प्रवेश के दिन पूर्वोक्त सभी विधि-विधान सम्पन्न होने के बाद उपधानवाही पौषधव्रत ग्रहण करें। यह विधि पौषध व्रतग्रहण विधि अधिकार में कही जा चुकी है। __यहाँ खरतरगच्छ की वर्तमान सामाचारी के अनुसार यह उल्लेखनीय है कि कदाचित् प्रथम के दो उपधान प्रवेश के दिन और मालारोपण के दिन आडम्बरपूर्वक नन्दी आदि का विधान करते हुए दिन का पौन प्रहर बीत जाए और अहोरात्रि का पौषध करना संभव न हो, तो दिन के तीसरे प्रहर में रात्रि पौषध ग्रहण करना चाहिए।145 तपागच्छ परम्परा में उपधान प्रवेश के दिन नंदीरचना विधि पूर्ण होने के तुरन्त बाद ही पौषधव्रत ग्रहण कर लेते हैं। उसके बाद उपधान प्रवेश, उद्देश, नंदीपवेयणा आदि के विधि-विधान सम्पन्न किए जाते हैं146 जबकि खरतर परम्परा में प्रवेश, उद्देश, नंदी आदि के विधान होने के बाद पौषधव्रत ग्रहण करते हैं। प्रवेश दिन के अतिरिक्त शेष दिनों में प्रात:कालीन प्रतिक्रमण करने के पश्चात् ही पौषधव्रत ग्रहण करते हैं। __ प्रातःकालीन प्रतिलेखन-विधि • उपधानतप में प्रतिदिन पौषध ग्रहण करने के बाद आसन तथा चरवला आदि की, शरीरस्थ वस्त्रों की एवं शॉल आदि उपधि की प्रतिलेखना की जाती है। साथ ही सज्झाय आदि के आदेश लिये जाते हैं। इन सबकी विधिवत् चर्चा पौषधविधि अधिकार में कर चुके हैं। वन्दनषट्क (पवेयणाविधि) • यह विधि उपवास आदि के प्रत्याख्यान ग्रहण करने के निमित्त की जाती है।

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