Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
368... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
माला किस वस्तु की हो?
यह मननीय प्रश्न है कि माला किस वस्तु की होना चाहिए ? महानिशीथसूत्र में कहा गया है कि 'पूजित हुई अथवा जिनबिम्ब पर पूजा के लिए रखी गई सुगंधी, अम्लान (ताजी) श्वेत पुष्पों की माला को लेकर गुरू स्वयं के हाथों से आराधक के दोनों कंधों पर डालते हुए कुछ उपदेश देते हैं | 90
इस पाठांश से अवगत होता है कि प्राचीन युग में श्वेत पुष्पों की माला पहनाई जाती थी तथा गुरू स्वयं अपने हाथों से उसे पहनाते थे, किन्तु पिछले कुछ वर्षों से यानी विक्रम की 14वीं शती के कुछ पूर्व से प्रायः सभी आम्नायों में अचित्त माला पहनाए जाने की आचरणा देखी जाती है। वर्तमान में सूत्र (सूत) की लाल वस्त्र आदि से बनी हुई माला पहनाते हैं - ऐसा विधिमार्गप्रपा में उल्लेख है।91 आचारदिनकर(16 वीं शती) में 'रत्त' के स्थान पर 'रत्न' पाठ है। इसका अर्थ निकलता है-रत्नादि से निर्मित माला | 92 उसमें यह भी पाठ है कि कितने ही पुण्यात्माओं द्वारा रेशमी वस्त्र के रेशे से बनी हुई और सुवर्ण पुष्पों एवं माणक-मोतियों आदि रत्नों से जड़ी हुई मालाएँ और कितने ही भाग्यशालियों द्वारा श्वेत पुष्पों से निर्मित मालाएं पहनाई जाती है।
उपर्युक्त वर्णन से इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि माला पहनाने के विषय में जो निर्देश दिए गए हैं या इस सम्बन्ध में जो भी परिवर्तन आए हैं, इसमें देश - कालगत स्थितियाँ अथवा परम्परागत सामाचारियाँ ही प्रधान रहीं हैं। आजकल प्राय: लाल सूत की बनी हुई मालाएँ ही पहनाई जाती हैं। श्वेत पुष्पों की माला पहनाना मन की उज्ज्वलता का प्रतीक है और लाल सूत की माला पहनाना मांगलिक एवं सिद्ध गति को प्राप्त करवाने का द्योतक है।
उस दिन मालाग्राही परमात्मा की प्रतिमा के सम्मुख नृत्य करता है, यथाशक्ति दान देता है, आयंबिल या उपवास का प्रत्याख्यान लेता है। वर्तमान में उपवास करने की परम्परा है। मालारोपण की समग्र विधि पूर्ण होने के पश्चात् उपस्थित श्रावक-श्राविका मालाग्राही को उसके स्वयं के घर ले जाते हैं। मालाग्राही घर जाकर स्व शक्ति के अनुसार ताम्बूल आदि का दान देता है। यदि उपाश्रय में नंदीरचना की गई हो, तो उपधानवाही समुदाय के साथ गृहचैत्य में जाता है और वह माला गृहप्रतिमा के सम्मुख रखकर छः माह तक उसकी पूजा करता है।