Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...329 संभव है, किसी पुण्यात्मा को उपधान-तप करने का संयोग न मिला हो और उसने नमस्कार महामंत्र आदि सूत्रों को स्वत: ही पढ़ लिया हो, तो वे सूत्र उधार लिए गए के समान जानने चाहिए। वे सूत्र उसके स्वयं के अधिकार के नहीं हो सकते, अत: ऐसे जीवों को भी जल्द-से-जल्द उपधान-तप का वहन कर लेना चाहिए।
. उपधान-तप करवाए बिना वर्तमान में भी आचरणा से नमस्कार महामंत्र आदि सूत्र प्रदान करने की परम्परा चल रही है। उसमें भी यही हेत है कि संयोग प्राप्त होने पर उन बालमजीवों को गीतार्थ गुरू की निश्रा में प्राप्त सूत्रों का उपधान वहन कर लेना चाहिए। ये सभी बातें उपधान के महत्व को दिग्दर्शित करती हैं। उपधान के मुख्य प्रकार
जैन साहित्य में उपधान सात प्रकार का बतलाया गया है। उनके नाम
ये हैं
1. पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध (नमस्कारमंत्रसूत्र) उपधान 2.प्रतिक्रमण श्रुतस्कंध (इरियावहिसूत्र) उपधान 3. शक्रस्तव (णमुत्थुणसूत्र) उपधान 4. चैत्यस्तव (अरिहंतचेईयाणंसूत्र) उपधान 5. नामस्तव (लोगस्ससूत्र) उपधान 6. श्रुतस्तव (पुक्खरवरदीसूत्र) उपधान 7. सिद्धस्तव (सिद्धाणंबुद्धाणंसूत्र) उपधान
इन सप्तविध सूत्रोपधानों के साथ तस्सउत्तरीसूत्र, अन्नत्थसूत्र, वैयावच्चगराणंसूत्र की भी वाचना दी जाती है।
प्रचलित विधि के अनुसार इन सात प्रकार के उपधानों को तीन भागों में विभाजित किया गया है। उन्हें पहला, दूसरा और तीसरा उपधान कहते हैं।
पहला उपधान- इस उपधान में 1. पंचमंगलमहाश्रुतस्कन्ध 2. इरियावहिसूत्र 3. चैत्यस्तवसूत्र 4. श्रुतस्तवसूत्र और 5. सिद्धस्तवसूत्र- इन पाँच सूत्रों का अध्ययन होता है। इस तरह प्रथम उपधान करने वाला पाँच सूत्रों को विधिपूर्वक ग्रहण करता है।
यहाँ विशेष उल्लेखनीय यह है कि महानिशीथसूत्र में वर्णित विधि के अनुसार तो सभी सूत्रों की वाचना ग्रहण करने के पश्चात् ही मालारोपण का विधान किया जाना चाहिए, किन्तु प्रचलित विधि के अनुसार उक्त पाँच सूत्रों की वाचना होने के उपरान्त भी मालारोपण- विधि कर लेते हैं तथा उपचार मात्र