Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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336... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... किए बिना ही, मालारोपण के दिन किए गए उपवास द्वारा प्रारम्भिक तीन गाथाओं की वाचना दी जाती है।50 ____ अंतिम दो गाथाओं की वाचना नहीं करते हैं। इसका कारण बताते हुए विधिमार्गप्रपाकार ने लिखा है कि दिगम्बरों द्वारा परिगृहीत गिरनारतीर्थ पर श्वेताम्बर के आधिपत्य को स्पष्ट करने के लिए तथा श्री गौतमगणधर द्वारा वंदित अष्टापदचैत्यस्थित जिनबिम्बों के उपदर्शनार्थ बाद में इन गाथाओं की वृद्धि की गई है,51 अत: इस उपधान में कुल तीन गाथाओं की ही वाचना दी जाती है।
__ तपागच्छ सामाचारी के अनुसार श्रुतस्तव एवं सिद्धस्तव इन दोनों सूत्रों का एक ही उपधान होता है। उनके अनुसार यह उपधान साढ़े चार उपवास-परिमाण तपपूर्वक वहन किया जाता है। इसमें कुल सात दिन लगते हैं और दोनों सूत्रों की एक-एक वाचनाएँ होती है।52 ज्ञानाचार और उपधान
जिनशासन के महत्त्वपूर्ण चार स्तंभ हैं- 1. साधु 2. साध्वी 3. श्रावक और 4. श्राविका। इन चारों प्रकार के साधकों के लिए अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार योग एवं उपधान वहन का निर्देश किया गया है। वस्तुत: योग और उपधान शास्त्राभ्यास एवं इन्हें आत्मस्थ करने के लिए किए जाते हैं। इन तप साधनाओं का मुख्य उद्देश्य शास्त्रज्ञान एवं सूत्रज्ञान अर्जित करना है। ___ इस विश्व की सभी परम्पराओं में यह अवधारणा दीर्घकाल से स्वीकृत रही है कि गुरू के सन्निकट रहकर विशिष्ट साधनापूर्वक अर्जित किया गया ज्ञान
और सूत्राभ्यास अन्त:स्थल को स्पर्शित करता है अर्थात पूर्णत: फलदायी बनता है। इसी का दूसरा नाम उपधान है। सारतत्त्व यह है कि उपधान सुयोग्य गुरू की निश्रा में रहकर विधिपूर्वक ज्ञानार्जन करने का मुख्य साधन है, सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति का अचूक आलंबन है, सम्यक्दर्शन को प्रकट करने का अनन्तर कारण है और सम्यक् चारित्र की शुद्धि का पुष्ट उपाय है। अतः सम्यग्ज्ञान की पवित्रता को टिकाए रखने एवं ज्ञानावरणीय कर्म का विशिष्ट क्षयोपशम करने के लिए ज्ञान के आठ आचारों का परिपालन करना चाहिए। दशवैकालिकनियुक्ति में ज्ञान के आठ आचार इस प्रकार प्रवेदित हैं3.