Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
304... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
28. उपासकदशा-अभयदेवटीका, प्र.-52 29. यदि पौषधग्राही घर से प्रतिक्रमण करके आया हो, तो वह ईर्यापथप्रतिक्रमण
करने के पश्चात् इच्छामिठामिसूत्र (आलोचनापाठ), सातलाख; अठारहपापस्थान; ज्ञानदर्शन; सव्वस्सवि.-ये सूत्रपाठ बोलकर पुन: ईर्यापथिक
प्रतिक्रमण करें। फिर पौषध-ग्रहण की विधि प्रारम्भ करें। 30. मुखवस्त्रिका, शरीर, उपधि आदि की प्रतिलेखना किस क्रमपूर्वक करना
चाहिए, इसकी विस्तृत चर्चा 'प्रतिलेखन विधि' नामक अध्याय में करेंगे। 31. यहाँ दिवसमात्र या रात्रिमात्र का पौषध लेना हो, तो 'जावदिवसं' या 'जावरत्तिं'
शब्द का प्रयोग करें। 32. पौषधव्रत के अनन्तर सामायिकव्रत का दंडक (पाठ) उच्चारित करते समय
'जाव नियमं पज्जुवासामि' के स्थान पर 'जाव पोसहं पज्जुवासामि' बोलना
चाहिए। 33. खरतर सामाचारी के अनुसार पौषधव्रत में पौषधवाहियों के लिए बोले जाने
वाला स्वाध्यायपाठ निम्न है, इसे 'उपदेशमाला की सज्झाय' कहते हैंजगचूड़ामणि भूओ, उसभो वीरो तिलोय सिरितिलओ। एगो लोगाइच्चो, एगो चक्खू तिहुअणस्स ।।1।।
संवच्छर-मुसभजिणो, छम्मासे वद्धमाण-जिणचंदो।
इय विहरिया निरसणा, जएज्ज एओवमाणेणं ।।2।। जइ ता तिलोयनाहो, विसहइ बहुयाइं असरिस-जणस्स। इय जियंतकराई, एस खमा सव्वसाहूणं ॥3॥
न चइज्जइ चालेलं, महइ-महा वद्धमाण जिणचंदो,
उवसग्ग सहस्सेहिं वि, मेरू जहा वायगुं जाहिं ।।4।। भद्दो विणीय-विणओ, पढमगणहरो समत्त सुयनाणी।
जाणतो वि तमत्थं, विम्हिय हियओ सुणइ सव्वं ।।5।। 34. श्री श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, प्रबोधटीका, भा.-3, पृ.-339-40 35. तपागच्छीय सामाचारी के अनुसार पौषधव्रत में 'मनहजिणाणं की सज्झाय'
कहते हैंमन्ह जिणाणं आणं, मिच्छं परिहरह घरह सम्मत्तं । छव्विह आवस्सयंमि, उज्जुत्तो होइ पइदिवसं ॥1॥
पव्वेसु पोसहवयं, दाणं सीलं तवो अ भावो । सज्झाय नमुक्कारो, परोवयारो अ जयणा अ ॥2॥