Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
284... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... के निमित्त मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें।44 . उसके बाद पौषधव्रती पानी के पात्रों की, उपधानवाही भोजन के पात्र आदि की एवं साधु भोजन-पानी के पात्रों की प्रतिलेखना करें। • तत्पश्चात् पौषधव्रती अकाल का समय (मध्याह काल) न आने तक स्वाध्याय करें। देववन्दन विधि
सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर आदि ग्रन्थों के अनुसार दिन का मध्याह काल (सूर्योदय से डेढ़ प्रहर जितना समय) पूर्ण होने पर पौषधव्रती को 'निसीहि' शब्दपूर्वक जिनालय में प्रवेश कर देववन्दन करना चाहिए।
यह विधि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक शाखा की सभी परम्पराओं में विद्यमान है। यहाँ इस विधि का सर्वाधिक महत्त्व रहा हुआ है। व्रतारोपण का प्रसंग हो चाहे पदस्थापना का, प्रतिष्ठा आदि का उत्सव हो चाहे किसी तप आदि की आराधना का- इन सभी में देववन्दन-विधि अनिवार्य रूप से की जाती है। इस विधान के पीछे ऐसी मान्यता है कि जब तक यह विधि सम्पन्न नहीं करते हैं, तब तक आराधना अधूरी रहती है। इस विधि-प्रक्रिया को लेकर श्वेताम्बर-मूर्तिपूजक की सभी शाखाओं में सामान्य अन्तर है। प्रत्याख्यानपारण विधि
जैन धर्म में तपाराधना से सम्बन्धित कई प्रकार के विधि-विधान आवश्यक माने गए हैं, उनमें यह भी एक विधि है। पौषधव्रती को पानी पीना हो, उपधानवाही को भोजन या पानी ग्रहण करना हो अथवा कोई उपवास, आयंबिल या किसी अन्य तप का प्रत्याख्यान किया हुआ हो और उसे पानी हो, तो उसके पूर्व निम्नलिखित विधि करनी चाहिए।
• विधिमार्गप्रपा के मतानुसार प्रत्याख्यान पूर्ण करने वाला व्रती या तपस्वी सर्वप्रथम दो खमासमणपूर्वक मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। • फिर खमासमणपूर्वक वन्दन कर आहार-पानी ग्रहण करने की अनुमति लें। • फिर प्रत्याख्यान पारने का पाठ बोलें। • उसके बाद ‘शक्रस्तव' पाठ द्वारा चैत्यवन्दन कर कुछ समय के लिए स्वाध्याय करें, फिर पानी आदि ग्रहण करें।45