Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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90... जैन गृहस्थ
के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
या पूजा करना गुरूमूढ़ता है। इसे समयमूढ़ता या पाखण्डीमूढ़ता भी कहते हैं।
आठ मद
मद का सामान्य अर्थ है - मान या अभिमान करना । जैन साहित्य में वर्णित आठ मद ये हैं
1. ज्ञानमद- ‘मैं ज्ञानवान हूँ - ऐसा विचार करना ज्ञानमद है।
2. पूजामद - 'मैं सर्वमान्य हूँ, मेरी आज्ञा सभी जगह चलती है' - ऐसा विचार करना पूजामद है ।
3. कुलमद - पिता के वंश को कुल कहते हैं । 'मेरा पितृपक्ष बहुत समृद्ध है' - यह विचार करना कुलमद है ।
4. जातिमद- माता के पक्ष को जाति कहते हैं । उस जाति का अभिमान करना जातिमद है।
5. बलमद- शारीरिक बल की प्रशंसा करना बलमद है।
6. ऋद्धिमद- धन, सम्पदा आदि ऐश्वर्य का मद करना ऋद्धिमद है।
7. तपमद- तप साधना का अहंकार करना तपमद है।
8. रूपमद- शारीरिक रूप का अहंकार करना रूपमद है।
षट् अनायतन
आयतन का अर्थ स्थान है। जो धर्म के आयतन होते हैं, वे धर्मायतन कहे जाते हैं किन्तु जो धर्म के स्थान नहीं हैं, वे अनायतन कहलाते हैं अथवा सम्यक्त्व आदि गुणों को जो स्थिर रखने में निमित्त हैं उसको आयतन कहते हैं और उससे विपरीत अनायतन कहलाते हैं। षट् आयतन के नाम निम्न हैं1. कुदेव की मान्यता का त्याग करना 2. कुगुरू की मान्यता का त्याग करना 3. कुधर्म- सेवन का त्याग करना 4. कुदेवानुयायियों के संसर्ग का वर्जन करना 5. कुगुरू के अनुयायियों के संसर्ग का वर्जन करना 6. कुधर्म के अनुयायियों के संसर्ग का त्याग करना । सम्यक्त्वव्रती को कुदेवादि की प्रशंसा भी नहीं करना चाहिए।
शंकादि आठ दोष
निःशंक आदि आठ गुणों के विपरीत शंकादि आठ दोष होते हैं, जो निम्न हैं-1. शंका 2. कांक्षा 3. विचिकित्सा 4. मूढदृष्टि 5 अनूपगूहन 6. अस्थिरीकरण 7. अवात्सल्य 8 अप्रभावना ।