Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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अध्याय-3 बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन
बारह व्रत यह जैन श्रावक होने का License है। इन व्रतों का स्वीकार करके ही एक श्रावक सही रूप में श्रावकत्व को जागृत एवं दृढ़ कर सकता है। यह मात्र कोई धार्मिक क्रिया या संप्रदाय बंधन नहीं है अपित जीवन जीने की एक सुसंस्कृत कला है, जिसके आचरण से व्यक्ति सुख-शांतिपूर्ण जीवन यापन कर सकता है।
बारह व्रत जैन श्रावक की साधना का एक विशिष्ट प्रकार है। बारहव्रत का अपरनाम आगार सामायिक है। आगार सामायिक तीन प्रकार की होती है1. सम्यक्त्व सामायिक 2. श्रुत सामायिक और 3. देशविरति सामायिक। देशविरति सामायिक का दूसरा नाम बारहव्रत आरोपण भी है। जन सामान्य में 'बारहव्रतआरोपण' यह नाम अधिक प्रचलित है। 'देशविरतिसामायिक'-यह शास्त्रीय नाम है। देशविरतिसामायिक के अन्य और भी नाम हैं।
आवश्यकनियुक्ति में देशविरति सामायिक के निम्न पर्यायवाची बतलाए गए हैं-विरताविरत, संवृतासंवृत, बालपंडित, देशैकदेशविरति, अणुधर्म और आगारधर्म। श्रावक-धर्म प्रतिपादन के प्रकार
जैन साहित्य में गृहस्थ के आचार-धर्म का वर्णन साधारणत: छ: प्रकार से प्राप्त होता है। किसी ने गृहस्थ धर्म का वर्णन ग्यारह प्रतिमाओं के आधार पर किया है, तो किसी ने बारह व्रतों के आधार पर और किसी ने सामान्य-विशेष धर्म के आधार पर किया है।
1. उपासकदशांगसूत्र में बारहव्रतों के साथ-साथ ग्यारह प्रतिमाओं का भी वर्णन किया गया है।
2. आचार्य कुन्दकुन्द, स्वामी कार्तिकेय और आचार्य वसुनन्दि ने श्रावकाचार का वर्णन ग्यारह प्रतिमाओं के आधार पर किया है।