Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
184... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
वाला श्रावक। यह विकल्प दो प्रकार से ग्राह्य है
• स्थूलहिंसादि न करना, मन से, वचन से, काया से • स्थूलहिंसादि न करवाना, मन से, वचन से, काया से
• एकविध-द्विविध- एक करण एवं दो योग से प्रत्याख्यान करने वाला श्रावक। यह विकल्प छ:भेदवाला है
• स्थूलहिंसादि न करवाना, मन-वचन से • स्थूलहिंसादि न करवाना, मन-काया से • स्थूलहिंसादि न करवाना, वचन-काया से • स्थूलहिंसादि न कराना, मन-वचन से • स्थूलहिंसादि न कराना, मन-काया से • स्थूलहिंसादि न कराना, वचन-काया से
6. एकविध-एकविध- एक करण एवं एक योग से प्रत्याख्यान करने वाला श्रावक। यह विकल्प छ: भेदवाला है।
• स्थूलहिंसादि न करना, मन से • स्थूलहिंसादि न करना, वचन से • स्थूलहिंसादि न करना, काया से • स्थूलहिंसादि न करवाना, मन से • स्थूलहिंसादि न करवाना, वचन से • स्थूलहिंसादि न करवाना, काया से
इस प्रकार पाँच अणुव्रत ग्रहण करने वाले प्रत्याख्यानी श्रावक के मूल भंग छ: और उत्तर भंग इक्कीस हैं।
7. उत्तरगुण- तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत उत्तरगुण कहलाते हैं। इन सात व्रतों को अनेक प्रकार से ग्रहण किया जा सकता है यद्यपि उत्तरगुणों को सामान्यतया एक ही मान लिया गया है। इस प्रकार उत्तरगुण सम्बन्धी प्रत्याख्यान करने वाला श्रावक।
8. अविरतसम्यग्दृष्टि- क्षायिक आदि सम्यक्त्व से युक्त श्रावक। 3. व्रती श्रावक के बत्तीस भेद ___ साध्वी हेमप्रभाश्रीजी द्वारा अनुवादित प्रवचनसारोद्धार के अनुसार अहिंसादि पाँच व्रतों में से प्रत्येक व्रत छ: प्रकार से ग्रहण किया जा सकता है