Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...219 प्रश्न हो सकता है कि तीव्र वेगगामी मन को नियंत्रित कैसे करें ? मन पवन से भी सूक्ष्म है। मन की गति बड़ी विचित्र है। जैन ग्रन्थों में कहा गया है-'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयोः' अर्थात मन ही मनुष्य के बन्ध
और मोक्ष का कारण है। इसका समाधान यही है कि व्यक्ति संकल्प शक्ति के बल पर मन को नियंत्रित कर सकता है।
5. वचनशुद्धि- सामायिक साधना की सफलता के लिए वचन-शुद्धि भी अनिवार्य मानी गई है। जहाँ तक हो, मौन रखना, यदि न बन सके तो उचित, सीमित, परिमित बोलना ही वचनशुद्धि है। घर- गृहस्थी की बातें करना, अनावश्यक धर्मचर्चा (तर्क-वितर्क) करना, किसी की निन्दा-चुगली करना वचन की अशुद्धि है।
... 6. कायशुद्धि- यहाँ कायशुद्धि का अभिप्राय कायिकशुद्धि से है, न कि शरीर को सजा-धजाकर रखने से। आन्तरिक आचार का भार मन पर है
और बाह्य-आचार का भार शरीर पर। जो मनुष्य उठने में, बैठने में, खड़े होने में, अंगों को हिलाने-डुलाने में विवेक रखता है वही कायशुद्धि है।
सामायिक करते समय भूमि की शुद्धता का ध्यान रखना भी आवश्यक है। जिस प्रकार शुद्धभूमि में वपन किया गया बीज फलदायक होता है, उसी प्रकार सामायिक की साधना भी फलवती बनती है। ___ऐतिहासिक और तुलनात्मक दृष्टि से उक्त शुद्धियों का विवेचन करने पर यह ज्ञात होता है कि जैन आगम में इस प्रकार का अलग से कोई विवरण नहीं है। यह व्यवस्था परवर्ती आचार्यों की है। यद्यपि द्रव्यसामायिक की अपेक्षा ये शुद्धियाँ सभी परम्पराओं में अनिवार्य अंग के रूप में स्वीकार की गई हैं। सामायिक सुखासन में ही क्यों
योग के आठ अंगों में आसन का तीसरा स्थान है। योग्य आसन से रक्तशुद्धि होती है। परिणामत: देह स्वस्थ तथा निरोगी रहता है। देह के निरोग रहने से विचार-शक्ति को वेग मिलता है। दृढ़ आसन का मन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है एतदर्थ सामायिक में आसनपूर्वक बैठना चाहिए। आसन के विभिन्न प्रकार हैं। उनमें सामायिक के लिए पर्यंकासन उत्तम माना गया है। इसे सुखासन भी कहते हैं। लोकभाषा में इसे पालथी मारकर बैठना