Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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234... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... तिर्यंच-दोनों होते हैं। ये सामायिक के स्तर जीवों की तरतम योग्यता के आधार पर बतलाए गए हैं।37 सामायिक का उद्देश्य
आवश्यकनियुक्तिकार के मतानुसार सामायिक एकमात्र पूर्ण और पवित्र अनुष्ठान है। यह गृहस्थ के अन्यान्य धर्मों में प्रधान हैं, उत्कृष्ट है, आत्महितकारी और मोक्षप्रदाता है अत: इसकी आराधना सावधयोग से बचने के लिए की जाती है।38 सामायिक का साध्य
सामायिक की साधना का मुख्य ध्येय समभाव है। समभाव को समत्व, समता, उदासीनता या मध्यस्थता कहते हैं। समभाव को प्राप्त करने वाला साधक भाव समाधि में प्रवेश करता है और अत्यन्त उत्कृष्ट स्थिति मुक्ति पथ का वरण भी कर लेता है। इस तरह समभाव का परिणाम निराबाध सुख, परम आनंद और आत्मिक शांति है। साध्य-साधक और साधना का परस्पर सम्बन्ध
प्रत्येक अनुष्ठान की सिद्धि साध्य, साधक और साधना-इन तीनों की योग्यता एवं शुद्धि पर रही हुई है। यदि साध्य योग्य न हो, तो उसके लिए की गई साधना निष्फल है। यदि साधक योग्य न हो, तो वह समुचित साधना कर नहीं सकता। यदि साधना सम्यक् न हो, तो सिद्धि प्राप्त होना असंभव है। अतएव कार्यसिद्धि के लिए साध्य, साधक और साधना की योग्यता (विशुद्धि) होना जरूरी है।
यहाँ मोक्षप्राप्ति होना साध्य है, व्रत का पालन करने वाला साधक है और सामायिक साधना है। सामायिकधारी को साध्य, साधक एवं साधना का पूर्ण ज्ञान रखना चाहिए। सामायिक में चित्त शांति के उपाय
साधना की सिद्धि में मन की चंचलता प्रमुख बाधक तत्त्व है। सामायिक में मन की स्थिरता बनी रहे, तद्हेतु कुछ उपाय कहे गए हैं। जैसे कि 1. वातावरण निर्मल हो, क्योंकि वातावरण का प्रभाव अधिक असरकारक होता है 2. आसन स्थिर हो-शरीर को अधिक हिलाए-डुलाए नहीं, एक