Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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244... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... सायंकालीन प्रतिक्रमण करने के पूर्व जब सामायिकविधि ग्रहण करते हैं, उस समय 'कटासन' और 'सज्झाय' का आदेश लेने के पूर्व एक खमासमणसूत्र पूर्वक 'प्रत्याख्यान लेवा मुँहपत्ति पडिलेहूँ?' बोलकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करते हैं। इसमें भी यह नियम है कि जिसने चौविहार उपवास किया हो, वह मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन न करें, जिसने तिविहार उपवास किया हो अर्थात पानी पीया हो, वह मात्र मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें तथा जिसने भोजन किया हो वह मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करके दो बार द्वादशावर्त वन्दन करें। इस विधि में चौविहार-उपवासी, तिविहार-उपवासी एवं भोजनग्राही की अपेक्षा से जो विधिभेद बतलाया गया है, वह गीतार्थों के लिए अन्वेषणीय है। यह विधि अर्वाचीन ग्रन्थों के आधार से कही गई है।
सामायिक पारने की विधि- . सामायिक की अवधि पूर्ण होने पर यदि बिजली आदि का प्रकाश शरीर पर पड़ा हो या गमनागमन सम्बन्धी किसी प्रकार का दोष लगा हो, तो सर्वप्रथम ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें।
• फिर एक खमासमण देकर प्रचलित परम्परा के अनुसार मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें।
• फिर एक खमासमण देकर 'इच्छा संदि. भगवन्! सामाइयं पारावेह'हे भगवन् ! आपकी आज्ञापूर्वक सामायिक पूर्ण करूँ? ऐसा कहे। यदि गुरू महाराज हों, तो 'पुणोवि कायव्वं'- सामायिक की साधना पुन: करनी चाहिए-ऐसा कहें। (तब शिष्य 'यथाशक्ति' कहे-यह वर्तमान परम्परा है, विधि ग्रन्थों में इसका उल्लेख नहीं है)
• फिर से एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! सामाइयं पारेमि'-हे भगवन् ! आपकी आज्ञापूर्वक सामायिक पूर्ण करता हूँ-ऐसा बोलें। तब गुरू विद्यमान हो, तो ‘आयारो न मोतव्वो'-तुम्हें समतामय आचार का त्याग नहीं करना चाहिए-ऐसा कहें। __(तब सामायिक पारने वाला श्रावक 'तहत्ति' शब्द कहे- यह परम्परा भी वर्तमान में है)
• उसके बाद दोनों हाथ जोड़कर तीन बार नमस्कारमन्त्र बोलें। फिर दाएं हाथ को नीचे और बाएं हाथ को मुख के आगे रखकर तथा मस्तक से