Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
पौषधव्रत विधि का सामयिक अध्ययन ...265 3. संसार या परिवार सम्बन्धी किसी प्रकार का वार्तालाप नहीं करना चाहिए।
4. मुख के आगे मुखवस्त्रिका का उपयोग रखकर धर्मचर्चा, सूत्रपाठ, आदि करने चाहिए।
5. अकारण दीवार का सहारा लेकर एवं पाँव फैलाकर नहीं बैठना चाहिए।
6. पौषधव्रत सम्बन्धी समस्त क्रियाएँ जैसे- प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन, देववंदन आदि यथाविधि उठ-बैठकर करनी चाहिए।
7. अपने स्थान से उठते या बैठते समय चरवले द्वारा शरीर एवं वस्त्र की प्रमार्जना करना चाहिए। यह प्रमार्जना जीवहिंसा से बचने के लिए की जाती है।
8. जहाँ तक संभव हो, पूरा समय एक स्थान पर ही बैठे रहना चाहिए।
9. अस्वस्थता होने पर भी आसन पर कदापि नहीं सोना चाहिए, क्योंकि आसन आराधना का साधन है।
___ 10. आजकल एक नई परिपाटी यह भी देखी जाती है कि पौषधव्रती पौषधव्रत ग्रहण करने के पश्चात जिनदर्शन, जलग्रहण, लघुनीतिपरिष्ठापन
आदि छोटे-बड़े कार्यों की किसी से अनुमति लेते हैं और उसके बाद ही उन क्रियाओं को करने का अधिकार मानते हैं। इस परम्परा का प्रचलन कब, क्यों
और किस स्थिति में हुआ? अवश्य मननीय है। इस विधि के पीछे क्या प्रयोजन हो सकता है? यह भी अज्ञात है। अन्य परम्पराओं में यह प्रणाली जीवित है या नहीं? पूर्ण जानकारी के अभाव में कुछ कह पाना अशक्य है, किन्तु मूर्तिपूजक खरतरगच्छ एवं तपागच्छ-आम्नाय में यह अवश्य मौजूद है। ___11. पौषधवाही को अपना पूरा समय धर्मध्यान में ही व्यतीत करना चाहिए
और शरीर को स्थिर रखना चाहिए। पौषधव्रत से होने वाले लाभ
पौषधव्रत स्वयं एक उच्चकोटि का अनुष्ठान है। इस व्रतानुष्ठान के माध्यम से व्रतधारी दैहिक, बौद्धिक, चैतसिक अनेक तरह के लाभ अर्जित करता है।