Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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252... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... उपसंहार ___आत्मा की शुद्ध अवस्था का नाम सामायिक है। सामायिक द्वारा न केवल मानसिक-सन्तापों से शान्ति मिलती है अपितु इससे बाह्य और आभ्यन्तरिक नानाविध पीडाओं एवं आधिभौतिक, आधिदैविक, आधिदैहिक-समस्त प्रकार की बाधाओं का सहज रूप में उपशमन भी होता है। जन साधारण में मैत्री, करूणा और अहिंसारूप नवचेतना का प्राण फूंकने में सामायिक के समान विश्व में अन्य कोई भी अनुभवसिद्ध उपाय नहीं है। ___सामायिक की साधना का मुख्य ध्येय 'आत्मवत् सर्वभूतेषु'-इस सिद्धांत को चरितार्थ करना है। ___ इस साधना के महत्त्व को व्यावहारिक तौर पर समझ पाना मुश्किल है। उसके लिए स्वानुभूत ज्ञान का सामर्थ्य चाहिए, अतएव इस साधना का महत्त्व एवं रहस्य भावनात्मक-बल, आध्यात्मिक-शक्ति और अनुभूति के स्तर पर ही जाना जा सकता है।
जैन धर्म यह कहता है कि विश्व में समभाव से बढ़कर कोई साधना नहीं है। व्यक्ति समता भाव के आधार पर बड़े से बड़े दुश्मनों को पराजित कर सकता है। इस सम्बन्ध में भगवान महावीर का जीवन प्रत्यक्ष उदाहरण रूप है। जैन आगम साहित्य इस बात के साक्षी हैं कि सामायिक की उत्कृष्ट साधना करने वाला एक मुहूर्त में केवलज्ञान-केवलदर्शन को उपलब्ध कर सकता है। यदि जघन्य रूप से भी समभाव का स्पर्श हो जाए, तो साधक सात-आठ भव में ही संसार का अन्त कर देता है- 'सत्तट्ठभवग्गहणाइं पुण नाइक्कमइ।'
सामायिकव्रत से मुनि जीवन की शिक्षा का अभ्यास होता है, चारित्रमोहनीयकर्म का क्षयोपशम होता है, सर्वविरति चारित्र का उदय होता है, संसार के त्रस-स्थावर समस्त जीवों को उतने समय के लिए अभयदान मिलता है तथा अहिंसा-सत्य-अचौर्य-बह्मचर्य-अपरिग्रह आदि आवश्यक व्रतों का परिपालन होता है। इससे सुसंस्कारों का अभ्यास होता है। जिसके फलस्वरूप व्यक्ति धीरे-धीरे सन्मार्ग की ओर बढ़ता हुआ सिद्धत्व ज्योति को समुपलब्ध कर लेता है।
इस साधना की तुलना अन्य धर्मों की साधना पद्धति से भी की जा