Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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256... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
39. प्रबोधटीका, भा.-1, पृ.-578-80
40. भगवतीसूत्र, 25/7
41. सुबोधासामाचारी, पृ. -3
42. विधिमार्गप्रपा, पृ. -6
43. आचारदिनकर, पृ. 51-52
44. भगवती - आचार्य महाप्रज्ञ, 1/423-26
45. तएण से मेहे अणगारे समगस्स भगवाओ महावीरस्स 'तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाई अहिज्जइ ।
ज्ञाताधर्मकथा, अंगसुत्ताणि, 1/1/195
46. 'तथारूप' - यह स्थविरों का विशेषण है। तथारूप का अर्थ है- श्रमणचर्या के अनुरूप वेशवाला।
47. ग्यारह अंगों में आचारांग पहला अंग है, किन्तु आगमग्रन्थों में प्राय: 'आचार माइयाइं एक्कारस अंगाई' का उल्लेख न कर 'सामाइयमाइयाइं एक्कारसअंगाई' का ही उल्लेख किया गया है। इससे अनुमान होता है कि 'सामायिक' आचारांग का ही दूसरा नाम है।
48. उपासकदशा, अंगसुत्ताणि, 1/45
49. अन्तकृत्दशा, अंगसुत्ताणि, 1 / 1 / 21, 6/96, 3/13, 8/16
50. विपाकसूत्र, मधुकरमुनि, 2/1/6
51. आवश्यकनियुक्ति, गा. - 545-560
52. वही, संपा. कुसुमप्रज्ञा, प्रस्तावना, पृ. 44
53. तिलकाचार्यसामाचारी, पृ. 15
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54. विधिमार्गप्रपा, पृ. -6
55. वही, पृ. -6
56. विधिमार्गप्रपा, पू. -18
57. (क)? विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 19 (ख) पौषधविधि, पृ. - 316
58. श्रावकपंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. 28-35, 50-52 59. पंचप्रतिक्रमणसूत्र (अचलगच्छीय), पृ.-28-35 60. 'पंचिंदियसूत्र' यह है