Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...247 समय 'पडिलेहणं संदिसावेमि' 'पडिलेहणं करेमि'-ये दो आदेश लेकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करते हैं, शेष सर्वविधि- उनके समान ही है।64
त्रिस्तुतिक परम्परा में सामायिक लेने एवं सामायिक पारने की विधि का क्रम इस प्रकार है65- 1. पूर्ववत् पुस्तकादि की स्थापना करते हैं 2. फिर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करते हैं 3. फिर द्वादशावर्तरूप दो वांदणा देते हैं 4. फिर खमासमणसूत्रपूर्वक सुहराई एवं अब्भट्ठिओमिसूत्र बोलते हैं 5. फिर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करके 'सामायिक संदिसावेमि' “सामायिक ठामि'-ये आदेश लेते हैं तथा एक बार नमस्कारमन्त्र बोलकर एक बार 'करेमिभंतेसूत्र' कहते हैं 6. पुन: ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करके 'बइसणं' आदि के चार आदेश लेते हैं फिर अन्त में स्वाध्यायरूप तीन नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हैं 7. सामायिक पारने की विधि तपागच्छीय परम्परा के समान ही है।
स्थानकवासी परम्परा में सामायिक लेने एवं पारने की विधि निम्नानुसार है 66- 1. यहाँ वस्त्र, भूमि आदि की शुद्धि पूर्ववत समझनी चाहिए। गुरूवन्दनसूत्र के स्थान पर तीन बार तिक्खुत्तोपाठ बोलते हैं 2. फिर खड़े होकर एक बार नमस्कारमन्त्र बोलते हैं 3. उसके बाद एक बार आलोचनासूत्र (इरियावहिपाठ), एक बार तस्सउत्तरी का पाठ, फिर इरियावहि के दो पाठ ध्यान में बोलते हैं 4. ध्यान पूर्ण होने पर ‘णमोअरिहंताणं' बोलते हैं 5. फिर एक बार कायोत्सर्गशुद्धि का पाठ, एक बार उत्कीर्तनसूत्र (लोगस्स का पाठ), एक बार प्रतिज्ञासूत्र (करेमिभंते का पाठ), दो बार शक्रस्तव बोलते हैं। शक्रस्तव कहते समय बायाँ घुटना खड़ा करके अंजलिबद्ध दोनों हाथों को उस पर रखते हैं। इतनी विधि सामायिक ग्रहण करते हुए की जाती है 6. सामायिक पूर्ण करते समय एक बार नमस्कारमन्त्र, एक बार आलोचनासूत्र(इच्छाकारेणं का पाठ), एक बार तस्सउत्तरी का पाठ बोलकर दो लोगस्ससूत्र का विधिपूर्वक ध्यान करते हैं 7. फिर एक बार कायोत्सर्गशुद्धि का पाठ, एक बार लोगस्ससूत्र का पाठ, दो बार शक्रस्तव का पाठ, एक बार समाप्तिसूत्र कहकर तीन नमस्कारमन्त्र बोलते हैं।67
तेरापंथी परम्परा में सामायिकग्रहण एवं पारणविधि लगभग