Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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248... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
स्थानकवासी आम्नाय के समान ही है। 68
दिगम्बर परम्परा में सामायिक के पूर्व कुछ क्रियाएँ होती हैं। जैसे - 1. प्रत्येक दिशा में नौ बार या तीन बार नमस्कारमंत्र का स्मरण करते हैं, फिर इर्यापथ शोधन पूर्वक पूर्वादि क्रम से चारों दिशाओं में तीन आवर्त्त और एक शिरोनति करते हुए श्लोक बोलकर वन्दना करते हैं।
2. फिर वन्दना मुद्रा में बैठकर प्रतिज्ञा करते हैं। वह प्रतिज्ञापाठ इस प्रकार है
तीर्थंकरकेवलि - सामान्यकेवलि - समुद्घातकेवलि - उपसर्गकेवलिमूककेवलि - अन्तः कृतकेवलिभ्यो नमो नमः । तीर्थंकरोपदिष्ट- श्रुताय नमो नमः । सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्रधारकाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्योनमो नमः । जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे, आर्यखण्डे, भारतदेशे .... प्रान्ते नगरे 1008 श्री - जिन- चैत्यालयमध्ये, अद्यवीरनिर्वाण सामायिक के कालपर्यन्त के लिए समस्त पापों का त्याग करता हूँ। "
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3. उसके बाद सामायिकग्रहण के लिए पवित्रभूमि पर आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके खड़े होते हैं। अंजलिबद्ध हाथ जोड़कर बारह आवर्त्त 70, चार शिरोनति 71, दो निषद्या और मन, वचन, काया की शुद्धिपूर्वक कृतिकर्म 72 करते हैं।
4. उसके बाद प्रतिज्ञा करते हैं
'अथपौर्वाह्णिक, मध्याहिणक, अपराणिक काले घटिकाद्वयपर्यन्तं सर्वसावद्ययोगात् विरतोऽस्मि' ।
तदनन्तर स्वाध्याय- ध्यान आदि में तल्लीन होकर अमितगति विरचित सामायिकपाठ बोलते हैं।
सामायिक पूर्ण करने की विधि प्राप्त नहीं हो पाई है। तुलनात्मक विवेचन
यदि हम पूर्वोल्लिखित विषय वस्तु का तुलनात्मक पक्ष से विचार करें, तो यह कह सकते हैं कि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक की सभी परम्पराओं में सामायिकदंडक का पाठ एक समान हैं, जबकि सामायिक पारने के पाठों में भिन्नता है। खरतरगच्छ, तपागच्छ, पायच्छंदगच्छ एवं त्रिस्तुतिक-इन परम्पराओं में पारस्परिक रूप से सामायिक क्रम को लेकर भी भिन्नताएँ हैं,