Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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224... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
और भविष्य मे जाएंगे। उन सभी जीवों के मुक्ति का आधार सामायिक था, है और रहेगा।26
• शास्त्रों में यह भी निर्दिष्ट है कि चाहे कोई कितना ही तीव्र तप तपे, जप जपे, चारित्र पाले, परन्तु समताभावरूप सामायिक के बिना न किसी को मोक्ष हुआ है और न कभी भविष्य में होगा।
. सामायिक को समता का क्षीरसमद्र भी कहा है। जो इसमें स्नान करता है, वह श्रावक भी साधु के समान हो जाता है।
• जैन आचार्यों ने इसे शुद्ध यौगिक-क्रिया के रूप में मान्य किया है। यौगिक क्रिया मुख्य रूप से चार प्रकार की वर्णित हैं- 1. मंत्रयोग 2. लययोग 3. राजयोग और 4. हठयोग। ये चारों योग अभ्यास एवं सद्गुरू के उपदेश से सिद्ध होते हैं। इनमें से सामायिकव्रत को राजयोग के समतुल्य कहा गया है। सामायिक का फल मोक्ष कैसे?
सामायिक का फल क्या है? यह प्रश्न जितना गंभीर है, उतना ही रहस्यपूर्ण इसका उत्तर है। सामायिक का एकमात्र फल मोक्ष है। कुछ साधक सामायिक से सांसारिक-सिद्धियाँ प्राप्त करने की इच्छा करते हैं। कोई व्यक्ति सामायिक के द्वारा पैसा, पद, प्रतिष्ठा या स्वर्गीय-सुखों को प्राप्त करने की कामना रखता है, जबकि यह आध्यात्मिक समृद्धि की प्रदाता है। जिसके समक्ष संसार की समस्त समृद्धियाँ नगण्य हैं, जो यह तथ्य जानता है वही सामायिक के उत्कृष्ट फल को प्राप्त कर सकता है।
जैन इतिहास में इस विषय को लेकर एक मार्मिक कथानक है कि एकदा मगध सम्राट श्रेणिक ने भगवान महावीर से पूछा- “मेरा नरकायु का बंधन हो चुका है, उसके निवारण का उपाय क्या है?" परमात्मा ने समझाया- शुभाशुभकृत कर्मो को अवश्य भोगना पड़ता है, उससे छुटकारा देने के लिए देव-दानव भी असहायक हैं। श्रेणिक का अत्याग्रह होने पर प्रभु ने नरक निवारण के चार उपाय बताए-उसमें से एक उपाय पूणिया श्रावक की एक सामायिक खरीदना था। श्रेणिक का मन नाच उठा। वह पूणिया की कुटिया में पहुँचा और उससे पूछा- “एक सामायिक का मूल्य क्या?” पूणिया ने कहा- “राजन् ! सामायिक का मूल्य क्या हो सकता है, मैं स्वयं अनभिज्ञ