Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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सामायिक व्रतारोपण विधि का प्रयोगात्मक अनुसंधान ...231 3. चलदृष्टि- सामायिक में इधर-उधर देखना अथवा दृष्टि को स्थिर न __ रखना। 4. सावधक्रिया- सामायिक में बैठने के बाद हिंसाजनक कार्यों को स्वयं
करना या दूसरों से करवाना। 5. आलंबन- दीवार या पलंग आदि का अवलंबन (सहारा) लेकर
बैठना। 6. आकुंचन प्रसारण- निष्प्रयोजन हाथ-पैर लंबे करना। 7. आलस्य- सामायिक में बैठे हुए आलस्य करना, अंगडाई लेना। 8. मोड़न- सामायिक में बैठे-बैठे हाथ और पैरों की अंगुलियाँ चटकाना,
दबाकर आवाज करना। 9. मल- शरीर को खौर-खूजकर मैल निकालना। 10. विमासन- गाल पर हाथ रखकर शोकग्रस्त की तरह बैठना अथवा
बिना पूँजे शरीर खुजलाना। 11. निद्रा- सामायिक में नींद के झटके खाना या सो जाना। 12. वैयावच्च- सामायिक में दूसरों से सिर या पैर दबवाना, मालिश
करवाना, इस तरह दूसरों से सेवाएँ लेना।31
सामायिक के उक्त बत्तीस दोष किंचित नामान्तर के साथ रत्नसंचयप्रकरण में भी उल्लिखित हैं।32
सामायिकव्रती को निम्न चार दोषों का भी अवश्य वर्जन करना चाहिए33- 1. अविधिदोष 2. अतिप्रवृत्ति-न्यूनप्रवृत्तिदोष 3. दग्धदोष 4. शून्यदोष।
1. अविधि दोष- शास्त्रोक्त विधिपूर्वक सामायिक न करना। ..2. अतिप्रवृत्ति न्यूनप्रवृत्ति दोष- सामायिक में रहते हुए जो कुछ करना
चाहिए, उसमें अधिक या न्यून प्रवृत्ति करना। 3. दग्ध दोष- सामायिकव्रत में रहते हुए इहलोक-परलोक, सांसारिक
तथा भौतिक सुख की चर्चा करना। 4. शून्य दोष- सामायिक में सजग नहीं रहना, उपयोग अस्थिर रखना।
सामायिकव्रती को इन दोषों की सम्यक् जानकारी अवश्य होना चाहिए, तभी वह इन दोषों से बच सकता है।