Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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200... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
व्रतारोपण संस्कार में नन्दी रचना अवश्य की जानी चाहिए। आचारदिनकर में नन्दीक्रिया का निर्देश दो बार है।137 प्रथम नन्दीक्रिया का आशय नन्दीरचना से है और दूसरी नन्दीक्रिया का आशय नंदीपाठ से है। दूसरी बार की नन्दिक्रिया के समय तीन बार नमस्कारमन्त्र का उच्चारण किया जाता है। इस प्रकार नन्दिरचना संबंधी सामान्य अन्तर देखे जाते हैं।
प्रतिज्ञापाठ की दृष्टि से- तिलकाचार्य सामाचारी में बारहव्रत स्वीकार करने संबंधी दो प्रकार के प्रतिज्ञा पाठ दिए गए हैं। प्रथम प्रकार का प्रतिज्ञापाठ विकल्प रहित व्रतग्रहण करने वाले साधकों की अपेक्षा से कहा गया है। दूसरे प्रकार का प्रतिज्ञा पाठ ऐसे आराधक वर्ग की अपेक्षा से बतलाया गया है, जो एक साथ बारहव्रत को स्वीकार करने में असमर्थ हैं। ये प्रतिज्ञा पाठ वैकल्पिक हैं। इसमें यह भी निर्देश दिया गया है कि वैकल्पिक रूप से व्रतग्रहण करने वाले गृहस्थों के लिए नन्दीरचना करने की आवश्यकता नहीं है।138
फलित है कि विवेच्य ग्रन्थों में इस विधि को लेकर कहीं समानता तो कहीं असमानता परिलक्षित होती है।
यदि हम बारहव्रत आरोपण विधि का श्रमण एवं वैदिक परम्परा के दृष्टिकोण से अध्ययन करें तो यह ज्ञात होता कि जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परम्पराओं में बारहव्रत की अवधारणा को लेकर समरूपता है। दिगम्बर-परम्परा के आदिपुराण में पन्द्रहवाँ संस्कार 'व्रतावतरण' नाम का माना गया है। यद्यपि व्रतावतरण संस्कार में हिंसाजनित पांच स्थूल पापों का ही त्याग करने का निर्देश दिया गया है, तथापि दिगम्बर-परम्परा के अनेक ग्रन्थों में श्रावक के द्वादशव्रतों का उल्लेख है। सागारधर्मामृत आदि विभिन्न श्रावकाचारों में इन व्रतों का अतिचारसहित विस्तृत विवेचन किया गया है। इस प्रकार बारहव्रतों की संख्या के सम्बन्ध में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर-परम्पराएँ एकमत हैं, किन्तु दोनों परम्पराओं में महत्त्वपूर्ण अन्तर शिक्षाव्रतों के सम्बन्ध में है।
श्वेताम्बर-परम्परा में शिक्षाव्रतों का क्रम इस प्रकार है- 9. सामायिकवकत 10. देशावगासिकव्रत 11. पौषधव्रत 12. अतिथि- संविभागवत।
दिगम्बर-परम्परा के कुछ ग्रन्थों में देशावगासिक के स्थान पर संलेखना को शिक्षाव्रत के रूप में स्वीकार किया है और उनका क्रम इस प्रकार है9. सामायिकव्रत 10. पौषधव्रत 11. अतिथिसंविभागवत और 12. संलेखनाव्रत।