Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...203 किन्तु पाँच अणुव्रतों के समान ही गृहस्थ उपासकों के लिए पंचशील का उपदेश दिया गया है। बौद्ध विचारणा के गृहस्थ-जीवन के पंचशील जैन-विचारणा के अणुव्रतों के समान ही है, अन्तर केवल यह है कि भगवान् बुद्ध ने पाँचवां शील 'मद्य-निषेध' कहा है, जबकि जैन-विचारणा का पाँचवां अणुव्रत परिग्रहपरिमाण है। बौद्ध परम्परा में भी गृहस्थ साधक के लिए परिग्रह-मर्यादा को महत्त्व दिया गया है, बुद्ध के अनेक वचन परिग्रह की मर्यादा का संकेत करते हैं। भगवान् बुद्ध कहते हैं- “जो मनुष्य खेती, वास्तु(मकान), हिरण्य (स्वर्णचांदी), अश्व, दास, बन्धु, इत्यादि की कामना करता है, उसे वासनाएँ दबाती हैं और बाधाएँ मर्दन करती हैं, तब वह पानी में टूटी नाव की तरह दुःख में पड़ता है।"143
बौद्ध-विचारणा में मद्यनिषेध को सातवें उपभोग-परिभोग नामक गुणव्रत के अन्तर्गत स्वीकारा गया है। यदि हम बौद्धसम्मत गृहस्थ धर्म का विवेचन करें, तो जैन विचारसम्मत गृहस्थ जीवन के बारहव्रतों की धारणा के स्थान पर अष्टशील एवं भिक्षुसंघ संविभाग की धारणा मिलती है।
1. हिंसा परित्याग (प्राणातिपात विरमण) 2. चोरी परित्याग (अदत्तादान विरमण) 3. अब्रह्मचर्य परित्याग(मैथुन विरमण) 4. असत्य परित्याग (मृषावाद विरमण) 5. मद्यपान परित्याग 6. रात्रिभोजन एवं विकाल भोजन परित्याग 7. माल्य-गन्ध धारण परित्याग 8. उच्चशय्या परित्याग 9. भिक्षुसंघ-संविभाग (अतिथिसंविभाग व्रत)।
डॉ. सागरमलजी जैन के अनुसार जैन विचारणा सम्मत परिग्रहपरिमाणव्रत एवं दिशापरिमाणव्रत का विवेचन बौद्ध विचारणा में स्पष्ट रूप से उपलब्ध नहीं होता है। जैन विचारणा के शेष व्रतों में सामायिकव्रत को सम्यक् समाधि के अन्तर्गत माना जा सकता है, यद्यपि उसका शिक्षाव्रत के रूप में वहाँ निर्देश नहीं है। इसी प्रकार जैन-देशावगासिकव्रत को तीन उपोषथशील के अन्तर्गत और बौद्ध सम्मत मद्यपान एवं रात्रिभोजन परित्याग को जैन भोग-परिभोग व्रत का
आंशिक रूप माना जा सकता है तथा विकाल भोजन, माल्यगन्धधारण और उच्चशय्या परित्याग-तीनों शील उपोषथ के विशेष अंग होने से जैन पौषधव्रत से तुलनीय हैं। बौद्ध परम्परा में जैन अभिमत निषिद्ध व्यवसायों का भी उल्लेख है। अन्तर यही है कि जैन विचारणा में उनकी संख्या 15 है और बौद्धमत में