Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...183 व्रत ग्रहण के कई विकल्प बताये गये हैं। तदनुसार श्रावक के भी अनेक भेद होते हैं।
प्रवचनसारोद्धार(1322-1350) में द्वादशव्रत ग्रहण के दो, आठ, बत्तीस, सात सौ पैंतीस एवं सोलह हजार आठ सौ आठ विकल्प बतलाये हैं। विकल्पात्मक दृष्टि से व्रतधारी श्रावक भी उतने ही प्रकार के होते हैं। 1. व्रती श्रावक के दो भेद
1. देशविरति श्रावक 2. औपशमिक, क्षायिक आदि सम्यक्त्वधारी श्रावक जैसे श्रेणिक, कृष्ण
आदि। 2. व्रती श्रावक के आठ भेद
1. द्विविध-त्रिविध- दो करण एवं तीन योग से प्रत्याख्यान करने वाला श्रावक। जैसे स्थूल हिंसा मन से, वचन से, काया से न स्वयं करना और न अन्य से करवाना। इसमें व्रती को अनुमोदन करने की छूट रहती है। ___2. द्विविध-द्विविध- दो करण एवं दो योग से प्रत्याख्यान करने वाला श्रावक। यह तीन प्रकार से होता है
• स्थूल हिंसा आदि मन से एवं वचन से न स्वयं करना, न करवाना। इस विकल्प से व्रत ग्रहण करने वाला श्रावक मात्र काया से हिंसादि पाप करता है।
• मन से एवं काया से स्थूल हिंसा आदि न करना, न करवाना। इस विकल्प से व्रतग्रहण करने वाला श्रावक जाने-अनजाने वचन हिंसा करता है, परन्तु मानसिक एवं कायिक दुष्प्रवृत्ति से रहित होता है।
• वचन एवं काया से स्थूल हिंसा आदि न करना, न करवाना। इस विकल्प से व्रत धारण करने वाला गृहस्थ मात्र मन से हिंसादि करने या करवाने का दुर्विचार करता है। उक्त तीनों विकल्पों में अनुमोदन की छूट रहती है।
3. द्विविध-एकविध- दो करण एवं एक योग से प्रत्याख्यान करने वाला श्रावक। यह विकल्प तीन प्रकार से ग्रहण किया जाता है
• स्थूल हिंसादि न करना, न करवाना मन से। • स्थूल हिंसादि न करना, न करवाना वचन से। • स्थूल हिंसादि न करना, न करवाना काया से। 4. एकविध-त्रिविध- एक करण एवं तीन योग से प्रत्याख्यान करने