Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ...153 5. धन- रूपए, पैसे, सिक्के, नोट, चेक, बैंक-बेलेंस आदि। 6. धान्य- अन्न, गेहूँ, चावल, उड़द, मूंग, तिल आदि। 7. द्विपद- दो पाँव वाले प्राणी जैसे- दास-दासी, नौकर, कर्मचारी आदि।
8. चतुष्पद- चार पाँव वाले प्राणी जैसे- हाथी, घोड़ा, बैल, बकरी, गाय आदि।
9. कुप्य- घर-गृहस्थी में उपयोग आने वाली सभी प्रकार की सामग्री जैसेबर्तन, वस्त्र, सोफासेट, मेज, कुर्सी, अलमारी, पंखे, टेलीविजन, वाहन आदि समस्त उपभोग परिभोग की सामग्री।
इन नौ प्रकार के परिग्रह की परिसीमा करना बाह्य परिग्रह परिमाणव्रत है तथा राग-द्वेष, कषाय आदि का संकोच करना आभ्यन्तर परिग्रह परिमाणव्रत है। इस प्रकार इच्छाओं एवं कषायों को मर्यादित करना परिग्रह परिमाणव्रत कहा जाता है।
परिग्रह परिमाणव्रत के अतिचार- परिग्रह परिमाणव्रत की रक्षा के लिए कुछ दोषों से निवृत्त रहने का निर्देश किया गया है। वे दोष निम्न हैं45
1. क्षेत्र एवं वास्तु के परिमाण का अतिक्रमण करना। 2. हिरण्य-स्वर्ण के परिमाण का अतिक्रमण करना। 3. द्विपद-चतुष्पद के परिमाण का अतिक्रमण करना। 4. धन-धान्य की सीमा का अतिक्रमण करना। 5. गृहस्थी के अन्य सामान की मर्यादा का अतिक्रमण करना।
यदि मर्यादा से अधिक परिग्रह की प्राप्ति हो जाए, तो उसका दानादि में उपयोग कर लेना चाहिए, जिससे इस व्रत की आसानी से रक्षा हो जाती है। __आचार्य समन्तभद्र ने अतिवाहन, अतिसंग्रह, विस्मय, लोभ और अतिभारवाहन-ये पाँच परिग्रह परिमाणव्रत के विक्षेप कहे हैं।46
परिग्रह परिमाणव्रत की उपादेयता- परिग्रह की मर्यादा करने से इच्छाएँ एवं तृष्णाएँ न्यूनतर हो जाती हैं। इसी के साथ अनावश्यक प्रवृत्तियाँ अवरूद्ध हो जाती हैं। इच्छाओं के न्यून होने पर आसक्ति, ममत्व, रागादि का विस्तृत दायरा सिमटता चला जाता है। इस व्रत का यथार्थ मूल्यांकन करने वाला व्यक्ति सादगी, सदाशयता एवं मितव्ययता का अनुकरण करता है।
परिग्रह परिमाण मानव को आत्मसंतोष एवं शान्ति प्रदान करता है। अनन्त