Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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162... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
पक्ष, मास, दो मास आदि 2. भोजन, वाहन, शयन, स्नान आदि 3. पुष्प, वस्त्र, आभूषण, गीतश्रवण आदि।68
उपभोग-परिभोगव्रत पालन हेतु कुछ आवश्यक बातें- इस व्रत का पालन करने वाले श्रावक को निम्न पाँच प्रकार की वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए, जो व्रत को दूषित एवं खंडित करती हैं1. त्रसवध- जिन पदार्थों में त्रसजीवों का अतिमात्रा में वध होता हो, जैसे
रेशमी वस्त्र, कॉडलिवर आइल आदि। 2. बहुवध- जिन पदार्थों के निर्माण में त्रसजीवों का उपघात तो नहीं होता, किन्तु निर्मित होने पर त्रसजीव पैदा हो जाते हैं अथवा असंख्य
स्थावरजीवों की हिंसा होती है जैसे मदिरा आदि। 3. प्रमाद- जिन वस्तुओं का सेवन करने से प्रमाद की अभिवृद्धि होती हो, ऐसे गरिष्ठ और तामसिक-भोजन, अति मात्रा में विकृतियों का सेवन,
आदि। 4. अनिष्ट- जिन वस्तुओं के सेवन से स्वास्थ्य बिगड़ता हो जैसे- अधपकी
वस्तुएँ, चलित रस आदि। 5. अनुपसेव्य- जिन वस्तुओं का सेवन जैन-गृहस्थ के लिए सर्वथा त्याज्य
है जैसे- मांस, मछली, अण्डे आदि।69
उपभोगपरिभोग परिमाण व्रत के अतिचार- इस व्रत में पाँच तरह के अतिचार लगते हैं। गृहस्थ-व्रती को इन अतिचारों से बचने का प्रयत्न करना चाहिए। वे निम्न हैं 701. सचित्ताहार- मर्यादा से अधिक सचित्त आहार करना। 2. सचित्त प्रतिबद्धाहार- सचित्त वस्तु के साथ सटी हुई या लगी हुई वस्तु ____ खाना, जैसे-खजूर, आम आदि गुठली सहित खाना। 3. अपक्वाहार- बिना पका हुआ आहार करना, जैसे-कच्चे शाक, फल,
आदि। 4. दुष्पक्वाहार- अच्छी तरह नहीं पका हुआ आहार करना। 5. तुच्छोषधि भक्षण- यहाँ औषधि का अर्थ वनस्पति है। जो खाने योग्य नहीं है, ऐसे पदार्थों का भक्षण करना, अथवा जिस वस्तु में खाने का भाग कम और फेंकने का भाग अधिक हो, जैसे-सीताफल आदि का सेवन करना।