Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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बारहव्रत आरोपण विधि का सैद्धान्तिक अनुचिन्तन ... 147
3. अचौर्य अणुव्रत
यह गृहस्थ का तीसरा व्रत है । इस व्रत का शास्त्रीय नाम स्थूलअदत्तादान विरमणव्रत है।32 इस व्रत को स्वीकार करने वाला साधक स्थूल चोरी से निवृत्त होता है। वह प्रतिज्ञा करता है - " मैं यावत् जीवन के लिए स्थूल चोरी का त्याग करता हूँ,मन-वचन-काया से न स्थूल चोरी करूंगा और न स्थूल चोरी कराऊँगा।”
अदत्तादान का सामान्य अर्थ है अदत्त - बिना दी हुई वस्तु, आदान- ग्रहण करना अर्थात किसी व्यक्ति की अधिकृत वस्तु को बिना अनुमति के ग्रहण करना अदत्तादान कहलाता है। श्रमण के लिए तो यह नियम है कि वह बिना अनुमति के दन्तशोधनार्थ तृण भी ग्रहण नहीं कर सकता है, किन्तु गृहस्थ के लिए वह सूक्ष्म चोरी होने से उस पर प्रतिबंध नहीं है।
स्थूल एवं सूक्ष्म चोरी का स्वरूप- रास्ते चलते हुए तिनका या कंकर उठा लेना, उद्यान से पुष्प और फल तोड़ लेना, किसी की रखी हुई वस्तु को देखने लगना आदि क्रियाएँ सूक्ष्म चोरी के प्रकार हैं।
स्थूल चोरी वह है जिसके करने से वह व्यक्ति समाज में चोर या बेईमान कहलाता है, जिसे लोग घृणा की दृष्टि से देखते हैं, जो अधिकारी द्वारा दण्ड (सजा) पाता है, आदि। गृहस्थ के लिए स्थूल चोरी का त्याग करना अनिवार्य
माना गया है।
स्थूल चोरी के प्रकार- जैन ग्रन्थों में स्थूल चोरी के निम्न पाँच प्रकार बताये गए हैं
1. खात खनना - सेंध लगाकर चोरी करना ।
2. गाँठ काटना- किसी की जेब काटकर या पर्स आदि खोलकर वस्तुएँ निकाल लेना।
3. ताला खोलकर या तोड़कर चोरी करना ।
4. दूसरों की असावधानी से गिरी हुई वस्तु को अपनी बताकर ले लेना। 5. मार्ग चलते हुए पथिकों को लूटना। इस व्रत में गृहस्थ साधक स्थूल चोरी न करने की प्रतिज्ञा करता है।
चोरी के बाह्य कारण- आचार्य देवेन्द्रमुनि के अनुसार चोरी का प्रथम कारण भोगों के प्रति आसक्ति है । जब मानव मन में भोग लालसा, वैभव लिप्सा