Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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140... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
होकर किसी के प्राणों का घात होता है। हिंसा केवल शरीर घात तक सीमित नहीं है, उसका सम्बन्ध मानसिक एवं भावनात्मक-प्राणघात से भी है। निश्चयतः पहले मानसिक हिंसा होती है, फिर शारीरिक हिंसा।
हिंसा के प्रकार- हिंसा दो प्रकार की होती है-1. स्थूल और 2.सूक्ष्म। श्रमण स्थूल और सूक्ष्म-दोनों प्रकार की हिंसा का त्यागी होता है। यहाँ स्थूलहिंसा का अर्थ है-त्रसजीवों की हिंसा। सूक्ष्महिंसा का अर्थ है स्थावर-पृथ्वी, अप्, तेउ, वायु, वनस्पतिकाय जीवों की हिंसा।
जैन मुनि स्थूल एवं सूक्ष्म-दोनों प्रकार की हिंसा का तीन करण और तीन योगपूर्वक त्याग करता है अर्थात मन, वचन, काया से न स्वयं हिंसा करता है, न दूसरों से हिंसा करवाता है और न हिंसा करने वाले का समर्थन ही करता है। उनका त्याग पूर्णत: होता है, इसलिए उन्हें सर्वविरति कहते हैं, किन्तु गृहस्थ केवल त्रसजीवों की हिंसा का ही त्यागी होता है, उसकी व्रत प्रतिज्ञा तीन योग और तीन करण पूर्वक न होकर तीन योग एवं दो करण पूर्वक होती है।
वह अहिंसा-व्रत को स्वीकार करते समय 'निरपराधी प्राणियों को मन, वचन और काया से न मारूंगा और न दूसरों से मरवाऊंगा' यह प्रतिज्ञा करता है, किन्तु परिस्थितिवश स्थूल हिंसा के समर्थन की छूट रखता है, इसलिए ही इस व्रत का नाम स्थूलप्राणातिपात विरमणव्रत है।
हिंसा के अन्य प्रकार- जैन ग्रन्थों में हिंसा के सूक्ष्म अर्थ को समझने की दृष्टि से निम्न चार प्रकार भी बताए गए हैं। इन चार प्रकार की हिंसाओं में से गृहस्थव्रती संकल्पजा-हिंसा का पूर्ण रूप से त्याग करता है, किन्तु शेष तीन हिंसाएँ वह चाहते हुए भी सर्वथा त्याग नहीं सकता है, सिर्फ मर्यादा कर सकता है। हिंसा के चार प्रकार ये हैं- 1. आरंभी हिंसा 2. उद्योगी हिंसा 3. संकल्पी हिंसा और 4. सापेक्ष हिंसा। आचार्य हरिभद्रसूरि ने संकल्पी एवं आरंभी-दो प्रकार की हिंसा कही है।18
1. आरंभी हिंसा- गृहस्थ जीवन का निर्वाह करने के लिए खाना पकाना, स्नान करना, साफ-सफाई करना, गृह निर्माण करना, कुआ खुदवाना आदि कार्यों में होने वाली हिंसा आरंभी हिंसा कहलाती है। इस हिंसा से बचना गृहस्थ के लिए संभव नहीं होता है, किन्तु इन कार्यों में प्रमादवश या असावधानीवश अनावश्यक हिंसा न हो, इसका गृहस्थ व्रती को पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।