Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ... 123
वह साधक भी प्राणप्रण से गृहीतव्रत का अनुपालन करता है ।
इस तरह हम देखते हैं कि इस व्रतारोपण से सम्बन्धित सभी विधिविधान उद्देश्यपूर्ण और विशिष्ट तथ्यों से समन्वित हैं।
तुलनात्मक विवेचन
यदि सम्यक्त्वव्रतारोपण-विधि का तुलना की दृष्टि से अध्ययन करें तो हमारे समक्ष मुख्य रूप से तिलकाचार्य सामाचारी (12वीं शती) श्रीचन्द्रसूरिकृत सुबोधासामाचारी ( 14वीं शती), जिनप्रभसूरिकृत विधिमार्गप्रपा (14 वीं शती), वर्धमानसूरिरचित आचारदिनकर ( 15वीं शती) आदि ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं।
इस शोधकार्य में इन्हीं ग्रन्थों को मुख्य रूप से आधार बनाया है। इनके अतिरिक्त आचार्य हरिभद्ररचित पंचाशक, षोडशक, पंचवस्तुक आदि कुछ अन्य ग्रन्थ भी इस विषय का सम्यक प्रतिपादन करते हैं। विधि-विधान का प्रामाणिक, मौलिक एवं सुव्यवस्थित स्वरूप इन्हीं ग्रन्थों में प्राप्त होता है । इनके आधार पर सम्यक्त्व व्रतारोपण संस्कार विधि का तुलनापरक विवेचन इस प्रकार है
व्रत अलापक की अपेक्षा- तिलकाचार्यसामाचारी एवं आचारदिनकर में आलापकपाठ के साथ 'नंदिकरणत्थं- नंदिकड्डावणियं' यह शब्द भी प्रयुक्त हुआ है, जबकि विधिमार्गप्रपा और सुबोधासामाचारी में इस शब्द का प्रयोग नहीं है। यह अन्तर स्वपरम्परा या कालक्रम में आए परिवर्तन की अपेक्षा है।
वासाभिमन्त्रण की अपेक्षा- तिलकाचार्यसामाचारी वासचूर्ण को वर्धमानविद्या द्वारा सात बार अभिमन्त्रित करने का निर्देश करती हैं । 114 सुबोधासामाचारी में किसी भी मन्त्र का नाम निर्देश नहीं हुआ है। 115 विधिमार्गप्रपा 116 में सूरिमन्त्र या वर्धमानविद्या से अभिमन्त्रित करने का निर्देश है, किन्तु वह अभिमन्त्रण की प्रक्रिया कितनी बार की जानी चाहिए? इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं है तथा आचारदिनकर में सूरिमन्त्र या गणधरविद्या से वास को अभिमन्त्रित करने का उल्लेख किया है । 117
यहाँ वासचूर्ण को अभिमन्त्रित करने के सम्बन्ध में मन्त्र एवं संख्या को लेकर जो भेद दिखाई देता है, वह भी सामाचारियों की भिन्नता का ही