Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...89
3. दान
जगत्
| 6. वृत्तिकान्तार
3. बलाभियोग 3. सम्यग्दर्शन 3.आत्मा अपने
धर्मरूपी महल | कर्मों की
की नींव है। कर्ता है। 4. अनुप्रदान 4. देवाभियोग 4. सम्यग्दर्शन |4.आत्मा कृतकों
धर्मरूपी धार्मिक- के फल की
भोक्ता है।
आधार है। 5. आलाप 5. गुरूनिग्रह 5. धर्मरूपी वस्तु | 5.आत्मा मुक्ति
को धारण करने प्राप्त कर
का पात्र है। सकती है। 6. संलाप
6. सम्यग्दर्शन |6. मुक्ति का उपाय | गुणरत्नों का
खजाना है। सम्यग्दर्शन के पच्चीस दोष
जो सम्यक्त्व का घात करते हैं, वे स्थान या विचार दोष कहलाते हैं। दिगम्बर ग्रन्थों में प्रतिपादित पच्चीस दोष निम्नलिखित हैं58
तीन मूढ़ता, आठ मद, छ: अनायतन और शंका आदि आठ दोष-इस प्रकार ये पच्चीस दोष सम्यग्दर्शन को मलिन करते हैं। तीन मूढ़ता __मूढ़ता का अर्थ है-अज्ञानता। मूढ़ता तीन प्रकार की कही हैलोकमूढ़ता, देवमूढ़ता और गुरूमूढ़ता।
__1. लोकमूढ़ता-लोक में प्रचलित धर्म के नाम पर जो विरूद्ध क्रियाएँ हैं, उनके प्रति श्रद्धा रखना अथवा मिथ्याधर्म, मिथ्याशास्त्र और मिथ्या क्रियाओं को धर्म मानना लोकमूढ़ता है।
2. देवमूढ़ता- अदेव या कुदेव में देवबुद्धि रखना अथवा पूजा-ख्याति, रूप-लावण्य, पुत्र-पुत्री आदि सम्पदा की प्राप्ति के लिए राग- द्वेषयुक्त मिथ्यादृष्टि देवों की आराधना करना देवमूढ़ता है।
3. गुरूमूढ़ता- लोगों के चित्त में चमत्कार उत्पन्न करने वाले एवं आरम्भ, परिग्रह, हिंसा आदि में रत रहने वाले वेशधारी साधुओं का सम्मान