Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...103 स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है
1. न्यायसंपन्न वैभव 2. उचित व्यय 3. उचित वेश 4. उचित विवाह 5. उचित घर 6. अजीर्ण में भोजन त्याग 7. उचित समय पर भोजन 8. माता-पिता की पूजा 9. पोष्य-पोषण 10. अतिथि-साधु आदि का सम्मान 11. ज्ञानवृद्ध-चारित्रपात्र की सेवा करना-ये ग्यारह गुण कर्त्तव्यरूप में आचरणीय हैं।
1. निंदा त्याग 2. निंद्यप्रवृत्तित्याग 3. जितेन्द्रिय 4. क्रोधादि शत्रुओं का परिहार 5. अभिनिवेश-त्याग 6. त्रिवर्ग का उचित सेवन 7. उपद्रव वाले स्थान का त्याग 8. अदेशकालचर्या त्याग-ये आठ गुण त्यागजन्य हैं।
1. पापभीरूता 2.लज्जा 3. सौम्यता 4. लोकप्रियता 5. दीर्घदृष्टि 6. बलाबलविचार 7. विशेषज्ञता 8. गुणपक्षपात-ये आठ गुण ग्रहण करने योग्य हैं।
1. कृतज्ञता 2.परोपकार 3. दया 4. सत्संग 5. धर्मश्रवण 6. बुद्धि के आठ गुण 7. प्रसिद्धदेशाचार पालन 8. शिष्टाचार प्रशंसा-ये आठ गुण साधना (अभ्यास) करने योग्य हैं।
यदि हम धर्मबिन्दु, योगशास्त्र, सागारधर्मामृत, प्रवचनसारोद्धार में प्रतिपादित गृहस्थ के गुणों का तुलनात्मक पक्ष से विचार करें, तो अवगत होता है कि उनमें नाम, क्रम एवं संख्या की दृष्टि से समरूपता और विषमता दोनों ही है। यद्यपि आचार्य हरिभद्र एवं आचार्य हेमचन्द्रकृत पैंतीस गुणों में संख्या सम्बन्धी अन्तर नहीं है, किन्तु नाम एवं क्रम की दृष्टि से मतभेद हैं। तत्सम्बन्धी स्पष्टबोध के लिए निम्न तालिका देखेंक्र. | आचार्य हरिभद्र आचार्य हेमचन्द्र आचार्य नेमिचन्द्र | पं.आशाधर | | द्वारा प्रतिपादित द्वारा प्रतिपादित द्वारा प्रतिपादित | द्वारा प्रतिपादित न्याय-नीतिन्याय | वैभव (1) विशालहृदयी | न्यायपूर्वक धन
अर्जन करने वाला वैभव 2. | समान कुल-शील शिष्टजनों की । स्वस्थता गुणीजनों का के साथ विवाह प्रशंसा करना(4)
सत्कार करने
सम्पन्न
वाला