Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...109 गए हैं। इसमें वर्ष, मास, दिन, लग्न आदि की शुद्धि दीक्षा-मुहूर्त के समान जाननी चाहिए।110
यदि समीक्षात्मक दृष्टि से देखा जाए तो सम्यक्त्व व्रत आदि का ग्रहण किस शुभदिन में किया जाना चाहिए? इसका सामान्य उल्लेख गणिविद्याप्रकीर्णक एवं आचारदिनकर में उपलब्ध होता है। सम्यक्त्व व्रतारोपण में प्रयुक्त सामग्री
सम्यक्त्वव्रत ग्रहण करने हेतु निम्न सामग्री आवश्यक मानी गई है-1. रजत या काष्ठनिर्मित त्रिगड़ा 2.चँदरवा पूठिया 3. चार दीपक 4. पाँच नारियल 5. पाँच नैवेद्य 6. पाँच फल 7. सवा किलो या सवा पाँच किलो चावल 8. नन्दिरचना के मध्य में एवं चारों दिशाओं में-कुल पाँच जगह रखने के लिए सवा ग्यारह-सवा ग्यारह रूपए 9. स्वस्तिक बनाने के लिए छोटे पाँच पट्टे 10. घृत 11. बत्ती 12. पंचधातु की चौमुखी प्रतिमा 13. प्रतिमा ढकने का वस्त्र 14. अभिमन्त्रित करने हेतु अक्षत और वासचूर्ण 15. गुरू महाराज के बैठने के लिए पट्टा 16. व्रतग्राही के लिए आसन, चरवला
और मुखवस्त्रिका 17. धूपदानी 18. गुरू पूजा एवं ज्ञान पूजा करने के लिए यथाशक्ति द्रव्य या बहुमूल्य वस्तु। सम्यक्त्वव्रत विधि की ऐतिहासिक विकास-यात्रा
किसी व्यक्ति को जैन परम्परा में दीक्षित करने के लिए सामान्यतया सम्यक्त्वारोपण-विधि की जाती है। इस विधि से यह सुनिश्चित किया जाता है कि यह व्यक्ति जैन धर्म में दीक्षित हुआ है। विश्व के प्रत्येक धर्म में किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म में दीक्षित करने के लिए एक विशेष प्रकार का विधि-विधान किया जाता है। जिस प्रकार ईसाईयों में बपतिस्मा, बौद्धों में त्रिशरणग्रहण, इस्लाम में सुन्नत आदि की विधि की जाती है, उसी प्रकार जैन धर्म में दीक्षित करने के लिए सम्यक्त्वारोपण की विधि की जाती है।
जहाँ तक प्राचीन जैन ग्रन्थों का सवाल है, वहाँ इस प्रकार के किसी विधि-विधान के उल्लेख नहीं मिलते हैं। उस युग में तीर्थंकर या जिन शासन के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करने मात्र से व्यक्ति को जैन मान लिया जाता था अथवा 'जिन प्रवचन सत्य है या निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है' मात्र इतना स्वीकार करने पर जैन धर्म में दीक्षित मान लिया जाता था। उसके पश्चात्