Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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56... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... गृहस्थ साधक के लिए सम्यक् श्रद्धा को आवश्यक माना गया है।
डॉ. सागरमल जैन के उल्लेखानुसार अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध ने कहा है कि जो साधक बुद्ध, धर्म और संघ में श्रद्धा रखता है, नैतिक-आचरण करता है, वही साधना के सम्यक्-मार्ग में प्रवेश कर सकता है। जो सदगृहस्थ बुद्ध के प्रति अविचल श्रद्धा से युक्त होता है, वह भगवान् अर्हत् है, सम्यक् सम्बद्ध है, विद्या और आचरण से संयुक्त है, लोकविद् है, अनुपम है, देवताओं तथा मनुष्यों के शास्ता हैं। आर्य श्रावक धर्म के प्रति अविचल श्रद्धा से युक्त होता है। भगवान् द्वारा गृहस्थ-धर्म को अच्छी प्रकार से समझकर उपदिष्ट किया गया है, वह प्रत्यक्षधर्म है, वह काल के बंधन से परे है, निर्वाण की ओर ले जाने वाला है, प्रत्येक विज्ञ पुरूष स्वयं जान सकता है। आर्य श्रावक संघ के प्रति अविचल श्रद्धा से युक्त होता है। भगवान् का श्रावक-संघ सुप्रतिपन्न है, ऋजुप्रतिपन्न है, न्याय-प्रतिपन्न है, उचित पथ पर प्रतिपन्न है, यह आदर करने योग्य है। यह सत्कार करने योग्य है। यह दक्षिणा के योग्य है। यह हाथ जोड़ने योग्य है। यह अशुद्ध चित्त की शुद्धि का कारण होता है तथा मैले चित्त की निर्मलता का कारण होता है।82 इस प्रकार गृहस्थ बुद्ध, धर्म और संघ के प्रति सम्यक्त्व-श्रद्धा रखने वाला होता है।
बौद्ध धर्म के मान्य ग्रन्थ दीर्घनिकाय में बुद्ध ने गृहस्थ जीवन के व्यावहारिक नियमों का भी उल्लेख किया है। वस्तुत: बुद्ध के अनुसार गृहस्थ उपासक को कैसा होना चाहिए? उनके द्वारा कथित नियम इस प्रकार हैं
1. गृहस्थ को हमेशा सदाचार एवं नीतिपूर्वक धनार्जन करना चाहिए।83
2. गृहस्थ की जितनी आय हो, उसके एक भाग का उपभोग करना चाहिए, दो भाग राशि को पुन: व्यवसाय में लगाना चाहिए तथा एक भाग को भविष्य के लिए सुरक्षित रख देना चाहिए।
3. परिवार एवं समाज का यथाशक्ति परिपालन करना चाहिए। बुद्ध ने गृहस्थ उपासक के लिए माता-पिता को पूर्वदिशा कहा है, आचार्य को दक्षिणदिशा कहा है, स्त्री एवं पुत्र को पश्चिम दिशा के रूप में स्वीकारा है, मित्र एवं अमात्य को उत्तरदिशा माना है, दास एवं कर्मकर को अधोदिशा में गिना है, श्रमण को ऊर्ध्वदिशा की उपमा दी है। प्रत्येक गृहस्थ को अपने कुल में इन छहों दिशाओं को अच्छी तरह से नमस्कार करना चाहिए।84