Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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68... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
वीतरागी पुरूष में या सिद्धावस्था में ही संभव है, साधनावस्था में संभव नहीं है। यद्यपि जीवन-व्यवहार और साधना को सम्यक् बनाने हेतु यथार्थ दृष्टिकोण की आवश्यकता अपरिहार्यत: होती है। अयथार्थ दृष्टिकोण ज्ञान
और जीवन के व्यवहार को सम्यक् नहीं बना सकता। यहाँ समस्या उत्पन्न होती है कि साधनात्मक जीवन में यथार्थ दृष्टिकोण का अभाव रहता है और बिना यथार्थ दृष्टिकोण के साधना हो नहीं सकती, तब क्या किया जाए? इसका समधान यह है कि दृष्टिकोण की यथार्थता के लिए, दृष्टि का रागद्वेष से पूर्ण विमुक्त होना आवश्यक नहीं है, मात्र इतना आवश्यक है कि व्यक्ति यथार्थता और उसके कारण को जाने। ऐसा साधक यथार्थता को न जानते हुए भी सम्यग्दृष्टि ही है, क्योंकि वह असत्य को असत्य मानता है और उसके कारण को जानता है। इस स्थिति तक पहुँच जाने के अनन्तर पूर्ण सत्य तो प्राप्त नहीं होता है, किन्तु सत्याभीप्सा जागृत हो जाती है। यही सत्याभीप्सा उस सत्य या यथार्थता के निकट पहुँचती है और वह जितने अंश में यथार्थता के निकट पहुँचती है, उतने ही अंश में उसका ज्ञान और चारित्र शुद्ध होता जाता है। ज्ञान और चारित्र की शुद्धता से पुन: राग-द्वेष में क्रमश: कमी होती है और उसके फलस्वरूप उसके दृष्टिकोण में और अधिक यथार्थता आ जाती है। इस प्रकार व्यक्ति स्वत: ही साधना की चरम स्थिति में पहुँच जाता है, लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि प्रत्येक सामान्य साधक के लिए इस प्रकार यथार्थ दृष्टिकोण को प्राप्त करना सम्भव नहीं है। स्वयं द्वारा सत्य जानने की विधि की अपेक्षा दूसरा सहजमार्ग यह है कि जिन्होंने स्वानुभूति से सत्य को जानकर उसका जो भी स्वरूप बताया है, उसको स्वीकार कर लेना। इसे ही जैन-शास्त्रकारों ने तत्त्वार्थश्रद्धान कहा है।18 . उक्त कथन से ध्वनित होता है कि सम्यग्दर्शन को चाहे यथार्थदृष्टि या तत्त्वार्थश्रद्धान कहें, उनमें वास्तविकता की दृष्टि से अन्तर नहीं है, केवल उपलब्धि की प्रक्रिया भिन्न है। जैसे एक वैज्ञानिक स्वत: प्रयोग के आधार पर किसी सत्य का उद्घाटन करता है और वस्तु तत्त्व के यथार्थस्वरूप को जानता है। दूसरा वैज्ञानिक कथनों पर विश्वास करके भी वस्तु तत्त्व के यथार्थस्वरूप को जानता है। इन दोनों दशाओं में व्यक्ति का दृष्टिकोण