Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...75 साध्य है। • अर्द्ध पुद्गल परावर्तन के अनन्तर नियम से मोक्ष पाने वाले भव्य जीव को उपशम सम्यक्त्व प्राप्त होता है। • प्रथम नरक में तीनों सम्यक्त्व होते हैं तथा अन्य छ: नरकों में मुक्तिदायक क्षायिक सम्यक्त्व को छोड़कर शेष दोनों सम्यक्त्व होते हैं। • सर्वप्रथम औपशमिक सम्यग्दर्शन होता है, अतएव औपशमिक भाव को आदि में ग्रहण किया है। क्षायिक भाव
औपशमिक भाव का प्रतियोगी है और संसारी जीवों की अपेक्षा औपशमिक सम्यग्दृष्टियों से क्षायिक सम्यग्दृष्टि असंख्यात गुना हैं अत: औपशमिक भाव के पश्चात् क्षायिक भाव को ग्रहण किया है। मिश्रभाव इन दोनों रूप में होता है और क्षायोपशमिक जीव औपशमिक और क्षायिक सम्यग्दृष्टियों से असंख्यात गुना होते हैं अत: मिश्रभाव को बाद में ग्रहण किया है। पंचविध वर्गीकरण
इस वर्गीकरण में औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, वेदक और सास्वादन-ये पाँच प्रकार के सम्यक्त्व अन्तर्निहित होते हैं।27 वेदक एवं सास्वादन का स्वरूप निम्न है
4. वेदक सम्यक्त्व- जब जीव क्षायोपशमिक सम्यक्त्व की भूमिका से क्षायिक सम्यक्त्व की ओर अग्रसर होता है, उस समय वह सम्यक् मिथ्यात्व नामक प्रकृति के शेष दलिकों का अनुभव करता है, सम्यक्त्व की यह अवस्था वेदक सम्यक्त्व है। वेदक सम्यक्त्व के अनन्तर जीव क्षायिक सम्यक्त्व को प्राप्त कर लेता है, क्योंकि मिश्रमोहनीय-कर्म के दलिकों का वेदन करता हुआ, उन्हें क्षय कर डालता है। __5. सास्वादन सम्यक्त्व- जब जीव औपशमिक अथवा क्षायोपशमिक सम्यक्त्व की भूमिका से सम्यक्त्व का वमन कर मिथ्यात्व की भूमिका की ओर लौटता है, उस अंतराल में जब तक मिथ्यात्व का उदय न हो, तब तक जो सम्यक्त्व का आस्वादन रहता है, वह सास्वादन सम्यक्त्व है।
सास्वादन और वेदक सम्यक्त्व- ये दोनों सम्यक्त्व की मध्यान्तर अवस्थाएँ हैं। पहली अवस्था सम्यक्त्व से मिथ्यात्व की ओर गिरते समय होती है और दूसरी अवस्था क्षायोपशमिक-सम्यक्त्व से क्षायिक-सम्यक्त्व की ओर बढ़ते समय होती है।