Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...83
ये प्रभावक पुरूष देश-काल के अनुसार अपनी विशिष्ट शक्तियों से शासन की प्रभावना में सहायक बनते हैं। इन प्रभावकों द्वारा की गई प्रभावना स्व-पर के सम्यक्त्व को निर्मल करती हैं।
पाँच भूषण - सम्यक्त्व को देदीप्यमान करने वाले उत्तम गुण भूषण कहलाते हैं। ये निम्न हैं
1. जैन शासन में कुशलता - जैन शासन के रहस्य को अच्छी तरह जानने वाला -1 - ऐसा व्यक्ति अन्य को प्रतिबोधित कर धर्मी बना सकता है।
2. शासन प्रभावना- प्रवचन, धर्मकथा आदि पूर्वोक्त आठ प्रकारों द्वारा जिन शासन के गुणों को दीप्त करना ।
3. आयतन आसेवना- जिन मंदिर की सेवा करना द्रव्य आयतन है और रत्नत्रयधारक मुनियों की पर्युपासना करना भाव आयतन है।
4. स्थिरता - स्व-पर को धर्म में स्थिर करना ।
5. भक्ति - चतुर्विध संघ की भक्ति करना ।
गुण सम्यक्त्व के दीपक समान हैं। इनसे सम्यक्त्व की शोभा बढ़ती है अतः ये सम्यक्त्व के भूषण हैं।
पाँच लक्षण - जैन धर्म में सम्यगदृष्टि का श्रद्धा अर्थ प्रसिद्ध है। जैनाचार्यों ने मोक्ष के प्रयोजन में दर्शन का श्रद्धा अर्थ ही मान्य किया है। जिन तत्त्वों के माध्यम से श्रद्धा अभिव्यक्त होती है उन्हें अंग लिंग या लक्षण कहा गया है। वे निम्नोक्त हैं 52_
1. शम- सम्यक्त्व का प्रथम लक्षण है शम। शम का मूलरूप प्राकृत में 'सम' होता है जो शम, सम एवं श्रम का सूचक है । जहाँ क्रोधादि की कमी 'शम', समभाव का आचरण 'सम' और श्रमण की श्रमशीलता 'श्रम' - तीनों का योग हो, वह शम है अर्थात जो जीव सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, निन्दाप्रशंसा के अवसर पर समभाव रखता है, वह सम्यक्त्वी है।
2. संवेग- सम् + वेग- इन दो पदों के संयोजन से संवेग शब्द निर्मित है। सम्-सम्यक्, वेग-गति अर्थात आत्मा की ओर सम्यक् गति अथवा मन में क्रोधादि के भाव (वेग) आने पर उसकी प्रतिक्रिया न करना, शान्त रहना संवेग है। दूसरे अर्थ के अनुसार मोक्ष की अभिलाषा होना, मोक्ष की ओर