Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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76... जैन गृहस्थ
के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
दशविध वर्गीकरण
उत्तराध्ययनसूत्र में सम्यग्दर्शन के हेतुभूत दस रूचियों का वर्णन किया गया है। 28 सम्यक्त्व के ये दस प्रकार सम्यक्त्व की उत्पत्ति के आधार पर किए गए हैं जो निम्न हैं
1. निसर्ग (स्वभाव) रूचि - सम्यक्त्व का आवरण करने वाले कर्मों की विशिष्ट निर्जरा होने पर स्वतः सत्य की प्रतीति होना निसर्गरूचिसम्यक्त्व है।
2. उपदेशरूचि - वीतराग वाणी सुनकर या गुरू आदि की प्रेरणा पाकर सत्य के स्वरूप को जानना और उसमें विश्वास करना उपदेशरूचिसम्यक्त्व है।
3. आज्ञारूचि- अरिहंत परमात्मा या गुरू आदि की आज्ञानुसार प्रवृत्ति करने पर तत्त्व की रूचि होना आज्ञारूचि - सम्यक्त्व है।
4. सूत्ररूचि - अंगप्रविष्ट एवं अंगबाह्य ग्रन्थों के अध्ययन द्वारा यथार्थ बोध होना सूत्ररूचि-सम्यक्त्व है।
5. बीजरूचि - आंशिक सत्यबोध को स्वयं के चिंतन द्वारा विकसित करना बीजरूचि-सम्यक्त्व है। जैसे जल में डाली गई तेल की एक बूंद फैलती जाती है, वैसे ही एक प्रकार के सत्य बोध द्वारा अनेक प्रकार का सत्यबोध होते रहना बीज सम्यक्त्व है।
6. अभिगमरूचि - अंग साहित्य आदि ग्रन्थों के अर्थादि को विस्तृत रूप से जानने पर तत्त्वश्रद्धा का उत्पन्न होना अभिगमरूचि सम्यक्त्व है।
7. विस्ताररूचि- छ: द्रव्य, नौ तत्त्व, द्रव्य-गुण- पर्याय, प्रमाण- नयनिक्षेप आदि का विस्तारपूर्वक विवेचन करने से उत्पन्न होने वाला सत्य का बोध या तत्त्व प्रतीति विस्ताररूचि - सम्यक्त्व है।
8. क्रियारूचि - प्रतिलेखन, प्रतिक्रमण, दर्शन, पूजन, समिति पालन, तप, विनय आदि क्रियाओं में रूचि रखना तथा इन क्रियाओं के माध्यम से सत्य की प्रतीति होना क्रियारूचि - सम्यक्त्व है।
9. संक्षेपरूचि - अल्पज्ञान के आधार पर अल्पतम सत्यानुभूति होना संक्षेपरूचि- सम्यक्त्व है।