Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन ...65
शब्द की निष्पत्ति 'दृश्' धातु में 'ल्युट' प्रत्यय लगकर हुई है। इस प्रकार दृष्टि
और दर्शन एक ही धातु से निष्पन्न हैं। 'दर्शन' शब्द के निम्न अर्थ प्रचलित हैं
• दृश् धातु का अर्थ है-देखने की क्रिया करना। ल्युट् प्रत्यय लगने पर दर्शन शब्द का सामान्य अर्थ होता है-देखना। यहाँ देखने के अन्तर्गत नेत्र से देखना, अनुभव से देखना आदि सभी का समावेश हो जाता है।
• दर्शन का एक अर्थ मान्यता या सिद्धांत भी है। जैनदर्शन, बौद्धदर्शन, न्यायदर्शन आदि पदों में दर्शन का यही अर्थ अभीष्ट है।
• जैनदर्शन में 'दर्शन' एक पारिभाषिक शब्द है। यहाँ दर्शन के दो अर्थ प्रचलित हैं, एक अर्थ है-सामान्य बोध। दर्शनावरणी कर्म के क्षयोपशम से जीव में जो दर्शन गुण प्रकट होता है वह ‘सामान्य बोध' अर्थ का परिचायक है।
• दर्शन का अन्य परिभाषित प्रयोग सम्यग्दर्शन के अर्थ में हुआ है। सम्यग्दर्शन का अर्थ है-वस्तु स्वरूप के अनुसार वैसी श्रद्धा करना। यद्यपि श्रद्धा से तात्पर्य जीवादि तत्त्वों के प्रति लिया जाता है, किन्तु यहाँ पर सम्यग्दर्शन का अभिप्राय दर्शनमोह-कर्म के क्षयादि से प्रकट 'दर्शन' से है।
• सामान्यतया दर्शन शब्द की व्युत्पत्तिपरक व्याख्या तीन प्रकार से की जा सकती है
1. दृश्यते अनेन इति दर्शनम्। 2. पश्यति अनुभवति इति दर्शनम्।
3. दृष्टि दर्शनम्। इस तरह दर्शन शब्द के तीन अर्थ होते हैं। • जिसके द्वारा देखा जाता है, वह दर्शन है। • देखना ही दर्शन है। (ये दोनों अर्थ बाह्यदृष्टि के सूचक हैं।) • दृष्टिकोण ही दर्शन है। (दर्शन शब्द का यह अर्थ दर्शन-शास्त्र से सम्बन्धित है।)
• साधना के क्षेत्र में दर्शन शब्द साक्षात्कार या आत्मानुभूति के अर्थ में है। आचारांगसूत्र में दर्शन शब्द आत्मानुभूति, आत्म साक्षात्कार आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है।