Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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अध्याय- 2
सम्यक्त्वव्रतारोपण विधि का मौलिक अध्ययन
जैन दर्शन मोक्ष प्राप्ति के लिए सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप त्रिविध साधना मार्ग का निर्देश करता है। तत्त्वार्थसूत्र में त्रिविध साधना मार्ग को मोक्ष प्राप्ति का मुख्य कारण कहा गया है। 1 यद्यपि उत्तराध्ययनसूत्र में सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप रूप चतुर्विध मोक्षमार्ग का विधान है तथापि परवर्ती आचार्यों ने तप को चारित्र में समाविष्ट किया है अतः परवर्ती साहित्य में मोक्ष की प्राप्ति के लिए त्रिविध साधना मार्ग का ही उल्लेख मिलता है। आचार्य कुन्दकुन्द ने समयसार एवं नियमसार में, अमृतचन्द्राचार्य ने पुरूषार्थसिद्धयुपाय' में तथा आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में त्रिविध साधना मार्ग का ही वर्णन किया है। इस प्रकार जैन दर्शन त्रिविध साधना मार्ग के समन्वय में मोक्ष की प्राप्ति मानता है, किन्तु मोक्ष प्राप्ति में सम्यग्दर्शन की प्रारम्भिक और प्राथमिक भूमिका होने से उसका विशिष्ट स्थान है।
सम्यग्दर्शन शब्द का अर्थ
जैन परम्परा में सम्यग्दर्शन, सम्यक्त्व एवं सम्यग्दृष्टि शब्दों का प्रयोग समान अर्थ में किया जाता है। यद्यपि आचार्य जिन भद्रगणिक्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य में सम्यक्त्व और सम्यग्दर्शन के भिन्न-भिन्न अर्थ बताए हैं। उसमें कहा गया है कि जिसके निमित्त से श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र सम्यक् बनते हैं, वह सम्यक्त्व है। इस प्रकार सम्यक्त्व का अर्थ सम्यग्दर्शन से अधिक व्यापक है, फिर भी सामान्यतया सम्यग्दर्शन और सम्यक्त्व शब्द एक ही अर्थ में प्रयुक्त किए जाते रहे हैं।
सम्यक्त्व का अर्थ- जिस प्रकार किसी शब्द से 'त्व' प्रत्यय लगकर नया शब्द बनता है जैसे - मनुष्य +त्व = मनुष्यत्व, प्रभु+त्व=प्रभुत्व, मधुर+त्व=मधुरत्व उसी प्रकार सम्यक् में 'त्व' प्रत्यय लगकर सम्यक्त्व शब्द