Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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64... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... बना है। ‘त्व' प्रत्यय भाव अर्थ में लगता है अत: सम्यक्त्व का सामान्य अर्थ-जो सम्यक् हो। आचारशास्त्र में सम्यक् शब्द उचित के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। उसका सामान्य अर्थ है-अच्छा, शुभ, सुन्दर या प्रशस्त अर्थात् शुभता, सुन्दरता, प्रशस्तता होना सम्यक्त्व है। जैन दृष्टि से यह सम्यक्त्व आत्मा का उपयोग या आत्मा का परिणाम है। इस प्रकार का शुभ परिणाम दर्शन मोहनीय कर्म का उपशम, क्षयोपशम या क्षय होने पर उत्पन्न होता है और उस शुभ परिणामी जीव को ही सम्यक्त्वी कहा गया है, अत: आत्मा के अध्यवसायों का निर्मल होना, प्रशस्त होना सम्यक्त्व है। ____ सम्यक्त्व का एक अर्थ सामान्य रूप से सत्य का बोध होना, यथार्थ का ज्ञान होना, ऐसा जानना चाहिए। सम्यक्त्व का दूसरा अर्थ तत्त्व-रूचि है। सम्यक्त्व का तीसरा अर्थ जीवा-अजीवादि तत्त्वों में श्रद्धा करना है।
सम्यक्त्व के पर्यायवाची- आवश्यकनियुक्ति में सम्यक्त्व के निम्न सात पर्यायवाची नाम वर्णित हैं?1. सम्यग्दृष्टि -अविपरीत प्रशस्तदृष्टि। 2. अमोह-ममत्वरहित आग्रह। 3. शोधि-मिथ्यात्व का अपनयन। 4. सद्भावदर्शन-जिनप्रवचन की उपलब्धि। 5. बोधि-परमार्थ का बोध। 6. अविपर्यय-तत्त्व का निश्चय होना। 7. सुदृष्टि-प्रशस्तदृष्टि।
स्वरूपतः सम्यक् दृष्टिवान् होना, तत्त्व का यथार्थबोध होना, अनाग्रही होना, सम्यक्त्व है। समकित शब्द इन्हीं अर्थों में रूढ़ है।
दर्शन का अर्थ- जैन दर्शन में 'दर्शन' शब्द अनाकार ज्ञान का प्रतीक माना गया है और श्रद्धा के अर्थ में भी प्रयुक्त हुआ है। सही दर्शन, सही ज्ञान तक और सही ज्ञान ही सही आचरण तक ले जाने की क्षमता रखता है अत: धर्म का मूल दर्शन है। इस दृष्टि से आप्तवचनों एवं तत्त्वों पर श्रद्धा करना ही सम्यग्दर्शन है। __जैनागमों में दर्शन शब्द विविध अर्थों में प्रयुक्त है। प्राकृत साहित्य में दर्शन के लिए 'दंसण' शब्द का प्रयोग होता है। संस्कृत भाषा में 'दर्शन'