Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि ...53 करूंगा। • लौकिक-लोकोत्तर अनायतन में नहीं जाऊंगा। • धर्मार्थ तप-स्नानहोमादि नहीं करूंगा। • अन्य देव और अन्यलिंगी संन्यासी आदि को नमस्कार एवं परोपकार के कार्य लोक व्यवहार हेतु ही करूंगा, इसी तरह अन्य शास्त्र का श्रवण एवं पठन भी लोक-व्यवहार हेतु करूंगा। __• ग्रहण, संक्रान्ति, उत्तरायण, दुर्गा अष्टमी, अशोका अष्टमी, करवाचौथ, चैत्रअष्टमी, महानवमी, विधिसप्तमी, नागपंचमी, शिवरात्रि, वत्सद्वादशी, दुग्धद्वादशी, नवरात्रि, होली प्रदक्षिणा, बुद्ध अष्टमी, काजल तीज, गोमती तीज, अनन्त चतुर्दशी, गौरीव्रत, सूर्यरथ यात्रा, प्रमुख लौकिक पर्वादि की व्रतउपासना नहीं करूंगा। • व्रतोपासक के लिए जो मिथ्यात्व के स्थान माने गए हैं जैसे-मंगलकार्य (दुकान आदि) के आरम्भ में गणेश आदि का नाम लेना, विवाहोत्सव में गणेश की स्थापना करना, शुक्ला दूज के दिन चन्द्रमा के दर्शन कर दशी-डोरा का दान करना, नवरात्रि में दुर्गा आदि देवियों की पूजा स्थापना करना, श्राद्ध पक्ष में पिण्डदान करना, पृथ्वी(पत्थर), पानी, अग्नि, वनस्पति आदि की पूजा करना, शीतला माता के पूजनार्थ शराब भरना, रवि सोम मंगल शुक्र आदि वारों में व्रत करना, कृषि-प्रारंभ में हल पूजा करना, माघ मास में घृत, कम्बल का दान देना, तिल और दर्भ द्वारा मृतक को जलांजलि देना, भूतप्रेतों को शराब(सकोरा) देना, मासिक-वार्षिक श्राद्ध करना, धर्मार्थ अन्य की कन्याओं का विवाह करवाना, धर्मार्थ कुआ-तालाब आदि बनाने का उपदेश देना, कौआ, बिल्ली आदि को पिण्डदान करना, पिप्पल-वट-नीम आदि वृक्षों का अभिसिंचन करना, वृक्षों का विवाह करना, गोधन आदि की पूजा करना, इत्यादि कृत्य नहीं करूंगा।
• इनके अतिरिक्त इन्द्रजालिक, नट-नटी आदि के नाटक नहीं देखूगा। भैंसा, मेढ़ा आदि के युद्ध नहीं देखूगा। • मूल, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, रेवती, आदि नक्षत्र में जन्म लेने वाले बालक के दोष निवारणार्थ शान्तिककर्म नहीं करूंगा। • अगलित (बिना छाने हुए) जल से स्नान नहीं करूंगा। जलक्रीड़ा आदि नहीं करूंगा। • साधर्मिक, बन्धुओं के साथ वैर-विरोध नहीं रखूगा। ये सभी अभिग्रह (नियम) गुरू द्वारा दिलवाए जाते हैं। व्रतग्राही देव- गुरू की साक्षी पूर्वक इन्हें स्वीकार करता है।
निष्पत्ति- व्रतगाही को अभिग्रह दिलाने का प्रयोजन गृहीत व्रत का