Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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34... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
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प्रतिक्रमणादि करें। फिर पुष्प, नैवेद्य आदि सामग्री ग्रहण कर स्वयं के गृह चैत्य में जाएं। जिनप्रतिमा की फलादिपूर्वक द्रव्यपूजा एवं चैत्यवन्दन पूर्वक भाव पूजा करें। • फिर नवकारसी, पौरूषी, एकासना आदि का आत्मसाक्षी एवं देवसाक्षी से प्रत्याख्यान ग्रहण करें। 63 उसके बाद अपने नगर के प्रमुख चैत्यालय में जाए। वहाँ विधिपूर्वक प्रवेश करें। • फिर रत्नत्रय आदि की आराधना- निमित्त जिनप्रतिमा की तीन प्रदक्षिणा करें। • फिर उत्तम प्रकार के पुष्प फलादि द्वारा द्रव्यपूजा करें। तदनन्तर चैत्यवन्दन करें। 64 यदि समय हो, तो पाँच शक्रस्तव-पूर्वक देववन्दन करें अथवा मध्यम या जघन्य चैत्यवंदन करें।
• उसके बाद जिनालय के समीप उपाश्रय में गुरू महाराज विराजित हों, तो उनके पास आएं और विधिवत् वन्दन करें। फिर देवसाक्षी से गृहीत प्रत्याख्यान को गुरूसाक्षीपूर्वक गुरूमुख से ग्रहण करें। यहाँ मुनिभगवन्त पदस्थ हों, तो उन्हें द्वादशावर्त्तवन्दन करें। हेमचन्द्राचार्य के अनुसार गुरू की प्रतिपत्तिपूर्वक प्रत्याख्यान ग्रहण करें। गुरू की प्रतिपत्ति (सेवाभक्ति) पूर्वक गृहीत प्रत्याख्यान विशेष लाभदायी और आत्महितकारी होता है। 65 • फिर गुरू से आगम शास्त्रों का श्रवण करें। • उसके बाद साधुओं से उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछें। यदि कोई साधु रूग्ण हो, तो औषधि आदि आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था करें।
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फिर पन्द्रह कर्मादान तथा अनीति आदि का त्याग करके जिसमें अत्यल्प पाप हो, वैसा व्यापार करें। • उसके बाद आचार्य हरिभद्रसूरि के मतानुसार शास्त्रोक्त विधि से भोजन करें। जिस समय भोजन करने से शरीर निरोग रहता हो या प्रत्याख्यान का पालन होता हो, उसे ही भोजन का उचित समय जानना चाहिए। असमय भोजन करने से धार्मिक बाधा और शारीरिक नुकसान होता है।
भोजनोपरान्त (मुट्ठिसहियं, तिविहार आदि के) प्रत्याख्यान लें। • फिर जिनमन्दिर या आराधना - स्थल में शास्त्रवेत्ताओं के साथ शास्त्रवार्त्ता करें | उसके बाद मध्याह्नकाल में जिनप्रतिमा के समक्ष चैत्यवंदन करें।66
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यहाँ हेमचन्द्राचार्य के अनुसार आवश्यक व्यापार से निवृत्त होने के बाद मध्याह्नकाल की पूजा करें, उसके बाद भोजन करें, फिर धर्म चर्चा करें 167 • तदनन्तर जो साधु वैयावृत्य करते-करते थक गए हों और विशेष कारण से विश्राम करना चाहते हों, श्रावक को चाहिए कि उनको थकान दूर करने दें।