Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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8... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
डॉ. सागरमल जैन ने इस प्रसंग को पुष्ट करते हुए लिखा है कि श्वेताम्बर कथा साहित्य में भगवान् ऋषभदेव की माता मरूदेवी द्वारा गृहस्थ जीवन से सीधे मोक्ष प्राप्त करने तथा भरत द्वारा श्रृंगार भवन में कैवल्य प्राप्त कर लेने की घटनाएँ यही बताती हैं कि गृहस्थ जीवन से भी साधना की चरम लक्ष्य की उपलब्धि (मोक्ष) संभव है, यद्यपि दिगम्बर परम्परा स्पष्ट रूप से गृहस्थ मुक्ति का निषेध करती हैं। यदि साधक की मनोदशा, क्षमता एवं कर्म वैचित्र्य की दृष्टि से विचार करें तो साधना पक्ष की कईं भूमिकाएँ हैं, कईं कोटियाँ हैं, उनमें गृहस्थ साधक की भूमिका विरताविरत की मानी गई है। विरत+अविरत का अर्थ है- आंशिक रूप से प्रवृत्ति एवं आंशिक रूप से निवृत्ति।
जैन विचारणा में आंशिक निवृत्तिमय जीवन भी सम्यक् माना गया है और उसे मोक्ष की ओर ले जाने वाला बताया गया है। सूत्रकृतांगसूत्र में कहा है कि सभी प्रकार के पापाचरणों में कुछ से निवृत्ति और कुछ से अनिवृत्ति होना ही विरताविरत है, परन्तु यह स्थान भी आर्य है तथा समस्त दु:खों का अन्त करने वाला मोक्षमार्ग है। यह जीवन भी एकान्त सम्यक् एवं यथार्थ है।
इस प्रकार सुस्पष्ट है कि जैनधर्म की श्वेताम्बर परम्परा में गृहस्थ साधना को भी मोक्ष प्रदाता के रूप में स्वीकारा गया है। इस अपेक्षा से गृहस्थ साधना का महत्त्व स्वत: परिलक्षित हो जाता है। गृहस्थ उपासक का साधनाक्रम __हर साधक के लिए यह शक्य नहीं कि वह महाव्रतों की समग्र, परिपूर्ण या निरपवाद आराधना कर सकें। कुछ संकल्पबली पुरूष ही इसे साध सकने में समर्थ होते हैं। महाव्रतों की साधना की अपेक्षा एक और सरल मार्ग है, जिसमें साधक अपनी शक्ति के अनुसार आंशिक रूप में व्रत स्वीकार कर सकता है। ऐसे साधकों के लिए जैन शास्त्रों में श्रमणोपासक शब्द का प्रयोग है। इसमें श्रमण और उपासक-ये दो शब्द हैं। उपासक का शाब्दिक अर्थ उप-समीप बैठने वाला है। जो श्रमण की सन्निधि में बैठता है, जिनसे अनुप्राणित होकर उपासना के पथ पर आरूढ़ होता है, वह श्रमणोपासक है। उपासना या आराधना को साधने का मार्ग यही है। केवल कुछ पढ़ लेने या सुन लेने से जीवन बदल जाए, यह संभव नहीं। अत: गृहस्थ साधक के लिए जो श्रमणोपासक शब्द का प्रयोग है, वह वास्तव में बड़ा अर्थपूर्ण है।