Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि ...9 छान्दोग्योपनिषद् में इस प्रसंग की सुन्दर व्याख्या करते हुए कहा गया है10-“साधनोद्यत व्यक्ति में जब बल जागरित होता है तब वह उठता है, उठकर परिचरण करता है। आत्मबल संजोकर उस और गतिमान होता है, फिर वह गुरू के समीप बैठता है, उनका जीवन देखता है, उनसे धर्मतत्त्व का श्रवण करता है, सुने हुए पर मनन करता है और जीवन में तदनुरूप आचरण करता है। ऐसा होने पर ज्ञात को आचरित करने के कारण वह विज्ञाता विशिष्ट ज्ञाता कहा जाता है।
श्रमणोपासक के लिए एक दूसरा शब्द श्रावक है। श्रावक का एक अर्थ सुननेवाला है। यहाँ सुननेवाला-यह अर्थ लाक्षणिक दृष्टि से है। नियमत: श्रावक संज्ञा तभी प्राप्त होती है, जब वह व्रत अंगीकार करता है।11 इस प्रकार जैन परम्परा में गृही-साधना का क्रम अनूठा और अद्वितीय है। गृहस्थ साधकों के विभिन्न स्तर
गृहस्थ साधकों के सम्बन्ध में यह कहना अपेक्षित होगा कि सभी गृहस्थ साधना की दृष्टि से समान नहीं होते हैं, उनमें स्तर-भेद होता है। गुणस्थान सिद्धान्त के आधार पर गृहस्थ साधकों को दो विभागों में वर्गीकृत किया जा सकता है 1. अविरत सम्यग्दृष्टि और 2. देशविरति सम्यग्दृष्टि। ___1. अविरत(अव्रती) सम्यगदृष्टि श्रावक- इस कोटि में वे गृहस्थ आते हैं, जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप साधना-मार्ग को भलीभाँति जानते हैं, उस पर निष्ठा रखते हैं, किन्तु उस पथ पर आगे नहीं बढ़ पाते। इस कोटि के गृहस्थ का श्रद्धा और ज्ञान तो यथार्थ होता है, लेकिन आचरण सम्यक् नहीं होता। इस प्रकार के साधक किसी प्रकार के नियम प्रत्याख्यान आदि की प्रतिज्ञाएँ भी स्वीकार नहीं कर सकते हैं। मात्र सद्ज्ञान और श्रद्धा के आधार पर अपनी साधना को आगे बढ़ाते हैं।
2. देशविरति सम्यगदृष्टि श्रावक- इस कोटि में उन गृहस्थ साधकों को रखा गया है, जो सम्यक् श्रद्धा के साथ-साथ यथाशक्ति सम्यक्-आचरण के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं। जैन चिंतन में अणुव्रतों, गुणव्रतों एवं शिक्षाव्रतों का पालन करने वाले गृहस्थ(श्रावक) को देशविरति कहा गया है। इस श्रेणी के साधकों में भी व्रताचरण की क्षमता एवं स्वयं की योग्यता के आधार पर अनेक विभेद हो सकते हैं। यह चर्चा अग्रिम पृष्ठों पर प्रस्तुत करेंगे। आवश्यकनियुक्ति