Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
View full book text
________________
जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि ...19 हानि- शिकारी अनेकों के जीवन को कष्टमय बनाता है। शिकारी एक पशु का वध नहीं करता, वह अहंकार के वशीभूत होकर अनेकों जीवों को दनादन मार देता है। आचार्य वसुनन्दी ने कहा है-मधु, मद्य, मांस का दीर्घकाल तक सेवन करने वाला जितने निकृष्ट पाप का संचय करता है, उतने सभी पापों को शिकारी एक दिन में शिकार खेलकर संचित कर लेता है।40 शिकारी को शिकार करते समय भी भयंकर आपत्तियों का सामना करना पड़ता है। उस समय कभी वाहन को तेज दौड़ाता है, तो कभी संकरी पगडंडियों से गुजरते हुए चट्टान से टकराता है। कभी उसे गहरे गर्त में गिरने का भय रहता है, तो कभी-कभी शिकार के पीछे दौड़ते समय तीव्र भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और थकान से भी व्यथित होना पड़ता है। कभी तीक्ष्ण कांटों से पैर बिंध जाते हैं, तो कभी पहाड़, नदी, नाले पार करने पड़ते हैं। कभी जंगल में आग लग जाने से प्राण बचाना कठिन हो जाता है, तो कभी रास्ता भूल जाने से जंगल में इधर-उधर भटकना पड़ता है। इस प्रकार उसका जीवन भंयकर विपत्तियों से घिर जाता है। अत: गृहस्थ श्रावक के लिए यह व्यसन त्याज्य है।
6. चोरी- किसी की अधिकृत वस्तु बिना अनुमति के ग्रहण करना चोरी कहलाता है। चोरी का वास्तविक अर्थ है-जिस वस्तु पर अपना ।
अधिकार न हो, उस पर मालिक की बिना अनुमति के अधिकार कर लेना। चोरी समाज का एक कलंक है। चोरी का दान कच्चे पारे को खाने के सदृश माना गया है।
चोरी कई प्रकार से होती हैं। प्रश्नव्याकरणसूत्र में चोरी के तीस नाम बताए गए हैं।41 एक चिन्तक ने चोरी के छः प्रकार बताए हैं- 1. छन्न चोरी 2. नजर चोरी 3. ठग चोरी 4. उद्घाटक चोरी 5. बलात् चोरी 6. घातक चोरी। . आधुनिक युग में कुछ अलग प्रकार की चोरियाँ भी होने लगी है। जैसेवस्तुओं में मिलावट करना, बढ़िया बताकर घटिया देना, कम देना, अपने लिए या अपने पारिवारिक जनों के लिए अच्छी चीजें रखकर दूसरों को रद्दी चीजें देना, नाम की चोरी करना, उपकार की चोरी करना ये सभी क्रियाएँ चोरी ही हैं। ____ हानि- यह अनुभवसिद्ध है कि जो व्यक्ति चोरी करता है, वह अपने जीवन को तो जोखिम में डालता ही है, साथ ही अपने परिवार को भी खतरे में डाल देता है। चोरी करने वाला धन तो प्राप्त कर लेता है, किन्तु उसकी शांति,