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पूर्व पीठिका
1.20.1.2 आगम की व्याख्याएँ एवं चरित काव्य
आगम-साहित्य के पश्चात् आगमाश्रित नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, पुराण, चरित्र, प्रबन्धकोष, कल्प एवं प्रकीर्णक ग्रंथों के माध्यम से जैनाचार्यों ने विलुप्त अंशों को सुरक्षित रखने में अपनी ओर से महान् पुरूषार्थ किया। वे ही ग्रंथ इतिहास-गवेषण में हमारे सहायक बने हैं। श्री भद्रबाहु स्वामी द्वारा रचित नियुक्तियाँ, जिनदासगणी महत्तर की ई. 600-650 में रचित आवश्यक चूर्णि, संघदासगणी का ई. 609 के आसपास रचित बृहद्कल्पभाष्य और वसुदेवहिण्डी जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण का वि. सं. 645 में रचित विशेषावश्यक भाष्य, विमलसूरि का वि. स. 60 में रचित पउमचरियं, इसी प्रकार यतिवृषभ की तिलोयपण्णत्ती, जिनसेन के आदिपुराण, हरिवंश पुराण गुणभद्र का उत्तरपुराण, रविषेण का पद्मपुराण, आचार्य शीलांक का 'चउवन महापुरिस चरिय', पुष्पदंत का 'महापुराण', भद्रेश्वर का 'कहावली' ग्रंथ, आचार्य प्रभाचंद्रसूरि कृत 'प्रभावक चरित्र', आचार्य मेरूतुंगसूरि कृत 'प्रबंधचिंतामणि' जिनप्रभसूरि कृत 'विविधतीर्थकल्प' आचार्य कक्कसूरि कृत 'उपकेशगच्छ चरित्र' हेमचंद्र का 'त्रिषष्टिशलाका पुरूष चरित्र' 'परिशिष्ट पर्व' आदि कई आचार्यों के लिखे गये ग्रंथ भी श्रमणियों के जीवन संबंधी तथ्यों को जानने के विश्वसनीय स्रोत हैं। आगम-ग्रंथों में ब्राह्मी-सुंदरी आदि जिन श्रमणियों के विषय में संकेत मात्र उपलब्ध होते हैं, उक्त ग्रंथों में उनकी विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। धारणी, पुष्पचूला, यक्षा आदि सात बहनें अवंती सुकुमाल की माता भद्रा, सुनन्दा, रुक्मिणी आदि महावीरोत्तरकालीन अनेक श्रमणियों का अनूठा तप, त्याग व जीवन वृत्त नियुक्ति चूर्णि एवं भाष्य साहित्य में देखने को मिलता है। रामायण एवं महाभारत काल की अनेक साध्वी स्त्रियों के उल्लेख भी आगमेतर साहित्य में उपलब्ध हैं।
1.20.1.3 पट्टावली
पट्टावलियों मे भी श्रमणियों का प्रामाणिक इतिहास प्राप्त होता है। प्राचीन समय में पट्टावली-नामावली के रूप में संक्षिप्त रूप से इतिहास को सुरक्षित रखने की पद्धति बहुमान्य थी। इनमें नामावली निबद्ध इतिहास प्राचीन एवं प्रामाणिक माना जाता है। नामावलियों में जैनाचार्यों के विषय में तो जानकारी मिलती ही है, साथ ही उनके शिष्य प्रशिष्य, उनके द्वारा प्रदत्त दीक्षाएँ, महत्त्वपूर्ण पद प्रदान आदि का भी प्रामाणिक विवरण प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त इनमें कहीं-कहीं उस काल की प्रमुखा साध्वियों के नाम तथा किस आचार्य ने कब किन साध्वियों को दीक्षा दी इसके भी उल्लेख हैं। इस प्रकार पट्टावलियाँ जैन साध्वियों के इतिहास को जानने का एक प्रमुख आधार है। पट्टावलियों के संग्रह के रूप में मुनि दर्शनविजय जी द्वारा संपादित 'पट्टावली समुच्चय' दो भागों में है। इसके प्रथम भाग में कल्पसूत्र, नन्दीसूत्र की स्थविरावली, तपागच्छ उपकेशगच्छीय पट्टावली आदि तथा द्वितीय भाग में कच्छूलीगच्छ, पूर्णिमागच्छ आगमगच्छ, बृहद्गच्छ एवं केवलागच्छ की पट्टावली पद्यमयी भाषा में संग्रहित हैं। 'जैन गुर्जर कवियों' के भाग दो और तीन के परिशिष्ट में विभिन्न पट्टावलियों का गुजराती में सारांश है। मुनि जिनविजयजी की विविध गच्छीय पट्टावली संग्रह' प्राकृत, संस्कृत, गुजराती आदि भाषाओं की पट्टावलियों का संग्रह है। जैन इतिहासविद् मुनि कल्याणविजय जी की 'पट्टावली पराग संग्रह' छोटी बड़ी 64 पट्टावलियों का सारांश है।248 'पट्टावली प्रबंध संग्रह' में आचार्य हस्तीमलजी महाराज द्वारा प्रकाशित लोकागच्छ की सात पट्टावलियों का संकलन है। दिगम्बर-परम्परा की मूलसंघ पट्टावली, भट्टारक पट्टावली, नंदी संघ पट्टावली आदि में उपयोगी जानकारी दी गई है। पट्टावलियों में प्रदत्त सूचनाएँ जैनधर्म के इतिहास निर्माण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
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